२० सम्यग्दर्शन। सर्व गुणोंके अंश प्रगट होते हैं। एक पर्याय प्रगट हुयी, एक गुणकी एक पर्याय ऐसा नहीं है। द्रव्य अनन्त गुणसे भरा है। सर्व गुणांश सो सम्यग्दर्शन। प्रत्येक गुण के अंश उसे तारम्यरूपसे निर्मल होते हैं। द्रव्य गुण...
सब पर्याय प्रगट होने योग्य थी वह (प्रगट होती है)। सामर्थ्यरूप है भले, परन्तु प्रगट पर्याय होती है। सामर्थ्यरूप द्रव्य (है), उस द्रव्यके आश्रयसे पर्याय प्रगट होती है। सामर्थ्यरूप अर्थात एक ओर पडा है ऐसा उसका अर्थ नहीं है। एक ओर पडा रहा है और पर्याय कहीं अलग हो गयी ऐसा नहीं है। जो द्रव्य है उसमें गुण हैं, उन गुणोंकी पर्याय प्रगट होती है। द्रव्य भले सामर्थ्यरूप है। (पर्याय) भले परिणमे, परन्तु आश्रय द्रव्यका है। पर्याय परिणमती है, द्रव्यके आश्रय बिना पर्यायका परिणमन होता नहीं।
मुमुक्षुः- द्रव्यके आश्रयपूर्वक अर्थात मैं ऐसा द्रव्य हूँ, ऐसे अभ्यासरूप ही वह परिणमित हो जाती है?
समाधानः- मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ। बारंबार ज्ञायकका अभ्यास करनेसे पर्यायका परिणमन हो जाता है। ज्ञायकका अभ्यास करनेसे। चारित्र चारित्रके आश्रयसे प्रगट नहीं होता, दर्शन दर्शनके आश्रयसे प्रगट नहीं होता। मैं दर्शन-सम्यक श्रद्धा प्रगट करुँ, ऐसे उसके आश्रयसे प्रगट नहीं होता। ज्ञायककी पर्याय, ऐसे विचार करते रहनेसे (नहीं होता)। पर्यायके आश्रयसे पर्याय प्रगट नहीं होती, द्रव्यके आश्रयसे प्रगट होती है।