Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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१९
एक ही (ध्येय होना चाहिये)। ज्ञायककी धारा प्रगट करनी, भिन्न आत्मा है उसे पहचानना।

... जो शुद्धात्माको पहचानना है, वह बिना लगनीके पहचानमें नहीं आता। विभावमें दुःख है, स्वभावमें सुख है। सुख कहाँ है? सुखको खोजनेके लिये सुख आत्मामें है, ज्ञायकमें है, वैसे दृढता किये बिना शुद्धात्माकी और जाये कैसे? ध्येय एक शुद्धात्माको पहचाननेका (होना चाहिये)। मैं शुद्धात्मा हूँ, ऐसे रटन कर ले, तो ऐसे रटन करनेसे नहीं होता। अन्दरसे उसका स्वभाव पहचानकर होता है। स्वभाव कब पहचानमें आता है? कि अन्दर उसे लगनी लगी हो कि मुझे शुद्धात्मा ही पहचानना है। शुद्धात्माके बिना चैन पडे नहीं। बारंबार उसकी लगनी, क्षण-क्षणमें उसकी भावना हो तो उसे पहचानमें आये।

मुमुक्षुः- निर्विकल्प समाधिके समय पर्यायमें ही लीन होता है न? कारण कि आत्माका परिणमन हो गया है।

समाधानः- द्रव्य पर दृष्टि है। लीनता तो द्रव्यमें, द्रव्यके आश्रयमें लीनता होती है। पर्यायमें लीनता... उसे आश्रय द्रव्यका है। प्रगट होती है पर्याय, पर्याय प्रगट होती है, परन्तु आश्रय द्रव्यका है। द्रव्यके आश्रय बिना पर्याय अकेली नहीं है। सिर्फ एक पर्याय निराधार ऊपर-ऊपर है, ऐसा नहीं है। अनुभूति-वेदन पर्यायका है, परन्तु उसे- पर्यायको आश्रय द्रव्यका है।

मुमुक्षुः- श्रद्धानमें द्रव्य रहा कि वेदनमें?

समाधानः- दृष्टमें द्रव्य है। द्रव्यकी श्रद्धा अर्थात श्रद्धा कर ली, ऐसा नहीं है, उसका आश्रय है। यह मैं ज्ञायक वस्तु हूँ, उसका आश्रय है। तथापि द्रव्य और पर्याय अलग नहीं है। द्रव्य और पर्याय सर्व प्रकारसे भिन्न नहीं है। वह तो लक्षणसे भिन्न है और अंश-अंशीका भेद है। बाकी सर्वथा भिन्न नहीं है। कोई अपेक्षासे द्रव्यका वेदन और कोई अपेक्षासे पर्यायका वेदन कहनेमें आता है। दोनों सर्वथा भिन्न नहीं है। आत्माकी स्वानुभूति हुयी ऐसा कहनेमें आता है। पर्यायकी स्वानुभूति हुयी ऐसा नहीं कहनेमें आता। द्रव्य तो अनादिका था ही, परन्तु वेदनमें नहीं आ रहा था। स्वयंने द्रव्यको ग्रहण किया इसलिये पर्याय प्रगट हुयी, शुद्ध पर्याय हुयी इसलिये पर्यायका वेदन हुआ। परन्तु द्रव्यके आश्रय बिना पर्यायका वेदन होता नहीं। द्रव्य-पर्याय स्वर्था भिन्न नहीं है। वह तो अंश- अंशीका भेद है। पर्याय द्रव्यके आश्रयसे ही प्रगट होती है। पर्यायका वेदन हुआ (और) द्रव्य एक ओर पडा रहा, आत्मा एक ओर पडा रहा और पर्यायका वेदन हुआ, ऐसे नहीं होता।

मुमुक्षुः- परन्तु द्रव्य तो सामर्थ्यरूप ही है न?

समाधानः- सामर्थ्यरूप है, लेकिन वह अनन्त गुणसे भरा है। सर्व गुणांश सो