१८ आत्माको भिन्न (जानते थे)। ज्ञायककी धारा वर्तती थी। वैसी दशा कैसे प्रगट हो, ऐसी भावना अन्दर होनी चाहिये। (जिनेन्द्र देवने) प्रगट किया और गुरुने साधना की वह कैसे प्रगट हो? यह अन्दर होना चाहिये। आत्मार्थीको अन्दर आत्माका प्रयोजन होता है। देव-गुरु-शास्त्रका प्रताप जगतमें वर्तता है।
... अन्दरमें आत्मा कैसे (प्रगट हो)? शुद्ध निर्मल पर्याय (कैसे प्रगट हो)? गृहस्थाश्रममें देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति आदि होता है, परन्तु अन्दर आत्मा कैसे प्रगट हो उसकी उसे गहराईमें खटक होनी चाहिये। सब करे। भगवानकी प्रतिष्ठाएँ, पूजा आदि करे, बडे- बडे महोत्सव करे, शास्त्रकी रचना करे, गुरुकी वाणी सुने, सब करे। परन्तु हेतु एक कि मार्ग क्या बताया है? भगवानने क्या कहा है? जो भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचाने और स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचाने। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्या/य क्या है और अपने क्या है? उसे वह स्वयं विचार करके नक्की करे कि मैं चैतन्य द्रव्य हूँ। मुझमें अनन्त गुण हैं। मेरी शुद्ध पर्याय मुझे कैसे प्रगट हो? भगवानने जो प्रगट किया, साधना की, भगवान स्वयं अंतर स्वरूपमें विराजमान हैं।
अपने तो वीतरागी बिंबकी स्थापना की। समवसरणमें साक्षात स्वरूपमें केवलज्ञानरूप विराजमान हैं। एक विकल्प भी उत्पन्न नहीं होता। वीतरागी हैं, स्वयं अंतर स्वरूपमें एकदम विराजमान हैं। अपने द्रव्य-गुणमें अन्दर अनन्त निर्मल पर्यायें भगवानको केवलज्ञानमें प्रगट हो गयी हैं। लोकालोकको जाने तो भी स्वयं स्वरूपमें विराजमान हैं। सहज जानते हैं। बाकी (तो) भगवान अन्दर स्वरूपमें विराजमान हैं। जैसे भगवान हैं, वैसा ही स्वयं है। भगवानने जो प्रगट किया वह मुझे कैसे प्रगट हो? यह हेतु और प्रयोजन होना चाहिये।
जैसा भगवानका स्वरूप है, वैसा ही स्वयंका है। स्वयं अनन्त गुण संपन्न है। ऐसी ज्ञायककी दशा कैसे प्रगट हो? उसकी जिज्ञासा, उसकी लगनी, उसकी भावना सब होना (चाहिये)। उसके लिये विचार, वांचन (होता है)। ध्येय एक आत्माका होना चाहिये।
मुमुक्षुः- सुखका यह एक ही उपाय होगा? दूसरा कोई उपाय नहीं होगा?
समाधानः- यह एक ही सुखका उपाय है। आत्माको-ज्ञायकको पहचानना, भेदज्ञान करना। यह विभाव मेरा स्वभाव नहीं है, मैं ज्ञायक स्वभाव हूँ। उससे मैं भिन्न हूँ। भेदज्ञानकी धारा प्रगट करनी, ज्ञायकको पहचानना, उसकी स्वानुभूतिकी दशा प्रगट करनी, यही एक उपाय है। उसमें बाह्य उपाय कोई नहीं है। सब शुभराग पुण्यबन्धका कारण है। परन्तु अन्दर एक ही उपाय है, शुद्धात्माको पहचानना। उसके लिये, जिन्होंने प्रगट किया उन्हें साथमें रखकर, उन पर महिमा रखकर अपना हेतु अन्दर शुद्धात्माको पहचानना (यह होना चाहिये)। शुभभावमें वह और अन्दरमें शुद्धात्मा कैसे पहचानमें आये? यह