२८ और आत्माकी ओर दृष्टि करे, आत्माका यथार्थ ज्ञान करे। बादमें उसकी स्वानुभूति यथार्थ होती है। यथार्थ ज्ञानपूर्वक यथार्थ ध्यान होना चाहिये।
मुमुक्षुः- यथार्थ ज्ञानपूर्वकमें दृष्टिप्रधान होना चाहिये।
समाधानः- हाँ, दृष्टिप्रधान होना चाहिये। यथार्थ ज्ञान उसको कहते हैं कि जिसमें दृष्टिकी प्रधानता रहती हो। दृष्टिकी प्रधानता रहती है, वह मुक्तिका मार्ग है। दृष्टि द्रव्य पर दृष्टि करनेसे (होता है)।
मुमुक्षुः- ... सागर उछल रहा है। अपने चिदान्द प्रभुमें अनन्त शक्तिका सागर पडा हुआ है। वर्तमानमें ज्ञानशक्ति और दर्शनशक्तिका अंश खुला हुआ है। उस वर्तमान दर्शन, ज्ञानकी शक्तिको-अंशको स्वभावका अंश, टोडरमलजी साहबने भी फरमाया है। लेकिन जब अनुभवमें अंतरकी ओर ज्ञान झुकता है, उस कालमें ज्ञान, दर्शन दोनों ही स्वरूपका स्वसंवेदन आनन्द लेता है। तो वह दर्शन लेता है या ज्ञान लेता है? वर्तमान खुला हुआ अंश।
समाधानः- दर्शन भी लेता है और ज्ञान भी लेता है और लीनता भी लेता है। दर्शनकी पर्याय.. दर्शन अर्थात प्रतीतरूप दर्शन लेना चाहिये। अवलोकनरूप दर्शन है वह तो अवलोकनरूप है। प्रतीतरूप जो दर्शन है, उसका अनुभव वेदनमें आता है। ज्ञानमें भी आता है और चारित्रमें भी आता है।
मुमुक्षुः- ज्ञानकी ही मुख्यतासे आत्मा स्वभावकी अनंत शक्तिओंके वेदनमें प्रत्यक्ष आ जाता है जाननेमें, आत्माकी अनुभूतिमें...?
समाधानः- दृष्टिके जोरसे स्वानुभूति होती है। दृष्टिका जोर होवे तो स्वानुभूती होती है। मात्र अकेले ज्ञानसे नहीं होता। दृष्टिके जोरसे स्वानुभूति होती है। दृष्टिके जोर बिना ज्ञान सच्चा नहीं हो सकता। दृष्टिका जोर होता है तो ज्ञान सच्चा होता है। दृष्टिके जोर बिना स्वानुभूतिमें ऐसी लीनता होती नहीं। दृष्टिके जोर बिना अकेले ज्ञानमात्रसे नहीं होता। ज्ञान तो साथमें रहता है।
मुमुक्षुः- लक्षण जो..
समाधानः- वह अवलोकनरूप दर्शन है और वह प्रतीतरूप दर्शन है।
मुमुक्षुः- वह प्रतीतरूप श्रद्धाकी पर्यायमें चला जाता है।
समाधानः- हाँ, श्रद्धाकी पर्याय। यह दर्शनगुणमें अवलोकनरूप है।
मुमुक्षुः- ज्ञान भी तो साथमें होता है। दर्शनका अंश खुला है, वैसे ज्ञानका अंश ज्ञानोपयोग भी खुला है। तो ज्ञानोपयोग और दर्शनउपयोगमेंसे दर्शन उपयोग अंतरमें अवलोकन करता है या ज्ञानका उपयोग अन्दर जाता है वह अवलोकन करता है?
समाधानः- दोनों अवलोकन करते हैं। प्रतीतके जोरसे भीतरमें जाता है तो सामान्यरूप