४२ क्षय हो गया है। (नीचेकी दशामें) रागका अंश मूलमेंसे क्षय नहीं हुआ है, परन्तु अमुक अंशमें छूट गया इसलिये जागृत दशा है। स्वानुभूतिकी दशा है। स्वयं स्वयंकी अनुपम अदभूत दशाको वेदता है कि जिसे कोई बाह्य उपमा नहीं दी जा सकती। चैतन्यकी स्वानुभूतिका कोई बाह्य उपमा लागू नहीं पडती। अदभूत अनुपम दशा है।
मुमुक्षुः- ... प्राप्त कर ले और मनुष्य प्राप्त न करे तो मनुष्यमें ज्यादा बुद्धि हो तो ज्यादा अटकता है?
समाधानः- ऐसा कुछ नहीं है कि मनुष्य ज्यादा अटके। इस पंचम कालमें ऐसी योग्यतावाले जीव है कि उन्हें दुर्लभ हो पडा है। मनुष्य ज्यादा अटके ऐसा नहीं है। वर्तमानमें तो मेंढक भी नहीं कर सकता है। सबको दुर्लभ हो गया है। और मनुष्योंको दुर्लभ हो गया है।
चतुर्थ काल जो सुलभ काल था, जीवोंकी पात्रता अधिक उग्र थी। ऐसी पात्रतावाले जीव थे। साक्षात भगवानका योग था। साक्षात केवलज्ञानीका योग था, चतुर्थ काल था और जीव भी ऐसी तैयारीवाले थे। इसलिये कितने ही मनुष्योंको तो होता है, परन्तु तिर्यंच जैसोंको भी होता है, ऐसा काल था। मनुष्योंको क्षण-क्षणमें जल्दी हो जाता था, परन्तु मेंढक जैसे तिर्यंचोंको भी होता था। वैसा वह काल सुलभ काल (था) और ऐसी पात्रतावाले जीव थे। यहाँ जो जन्म लेते हैं, वह ऐसी ही पात्रता लेकर आते हैैं कि जिन्हें सब दुर्लभ हो जाता है। इसलिये मनुष्योंमें उतनी तैयारी नहीं है और तिर्यंचोंमें तो तैयारी तो बिलकुल नहीं दिखाई देती। तिर्यंचोंमें समझना अत्यंत कठिन है। मनुष्योंको दुर्लभ है, तिर्यंचोंको दुर्लभ है। चतुर्थ कालमें अनेक मनुष्योंको होता था और तिर्यंचोंको भी होता था। सबको होता था।
मुमुक्षुः- मोक्षमार्ग कहाँ-से शुरू होता है?
समाधानः- मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शनसे शुरू होता है।
मुमुक्षुः- आज सुबह २३२ गाथा गुरुदेवके प्रवचनमें चली थी। उसके अंतर्गत आया था कि...
समाधानः- सम्यग्दर्शनकी अपेक्षासे मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन जब हुआ तब मोक्षमार्ग शुरू होता है। चारित्रकी अपेक्षासे केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है, पूर्ण बादमें होता है। अंश तो पहले प्रगट होता है। पहले अंश प्रगट होता है, पूर्णता चारित्र होवे तब होती है। मार्ग शुरू हो जाता है। और केवलज्ञानकी अपेक्षासे चारित्रकी अपेक्षासे मोक्षमार्ग मुनिकी दशामें होता है।
रुचि तो स्वयंको करनी पडती है। बाहरकी रुचि लगी है। आत्माकी महिमा नहीं