Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 474 of 1906

 

४१
ट्रेक- ७७

सब जानता है। स्वानुभूतिमें स्वयं द्रव्यको अभेद जानता है, गुणोंका भेद जानता है, उसका वेदन स्वानुभूतिमें जानता है, शुद्ध पर्यायको जानता है। ज्ञान सब जानता है। ज्ञान पोतानी अनुभूतिकी पर्यायको ज्ञान न जाने तो दूसरा कौन जाने? ज्ञान सब जानता है। अभेद हो जाये इसलिये कुछ जानता नहीं है, उसकी वेदनकी पर्यायको भी नहीं जानता है, ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- जानता हुआ अंतर आनंदके वेदनमें मग्न हो जाता है।

समाधानः- जानता हुआ। विकल्प नहीं है, निर्विकल्प है। आकुलता नहीं है, राग नहीं है। शांतदशा, शांतिमय दशा, आनंदमय दशाको जानता हुआ आत्मामें लीन है।

मुमुक्षुः- टोडरमलजी साहब फरमाते हैं कि प्रदेशका तो प्रत्यक्षपना होता नहीं, अनुभवके कालमें। मात्र रागरहित दशा अंतरमें प्रगट हुयी है, उस रागरहित दशामें ही आनंदका वेदन करके ज्ञान अन्दर रुक जाता है।

समाधानः- प्रदेशको जान नहीं सकता। (उसका कोई) प्रयोजन नहीं है। ज्ञान स्वयं स्वानुभूतिका वेदन करता है। राग छूट गया, (फिर भी) स्वयंका अस्तित्व है न? शून्य नहीं हो गया। राग छूट गया, परन्तु आत्मा स्वयं तो खडा है। निर्विकल्प दशामें आत्मा खडा है। वीतरागी दशामें राग छूट गया इसलिये अन्दरसे आत्माकी वीतरागी दशा प्रगट होती है। आंशिक राग छूट गया, पूर्ण वीतराग नहीं है, परन्तु आंशिक वीतरागी दशा है। इसलिये अपना वेदन है। अपनी वेदनकी दशाको जानता है। प्रत्यक्ष ज्ञान भले नहीं है।

प्रत्यक्ष ज्ञान केवलज्ञानीको है। प्रदेश आदि सब केवलज्ञानी जानते हैं। प्रत्यक्ष नहीं होने पर भी स्वानुभव प्रत्यक्ष है। मति-श्रुत परोक्ष होने पर भी उसकी स्वानुभूति प्रत्यक्ष है। वेदन अपेक्षासे प्रत्यक्ष है। वह किसीको पूछने नहीं जाना पडता। स्वानुभूति वेदन अपेक्षासे प्रत्यक्ष है। राग छूट गया इसलिये शून्य हो गया, ऐसा नहीं है। राग छूट गया तो अंतरमें जो आत्मा वीतरागी स्वरूप, निर्विकल्पस्वरूप था, ऐसे आत्माकी स्वानुभूति प्रगट हुयी। अदभूत अनुभव दशा, सिद्ध जैसा अंश प्रगट होता है। जागृत दशा है। राग छूट गया इसलिये शून्य दशा नहीं है, जागृत दशा है।

मुमुक्षुः- जड जैसा नहीं हो गया।

समाधानः- हाँ, जड जैसा नहीं हो गया है। बाहरका जानना छूट गया और राग छूट गया इसलिये जड जैसा हो गया, कुछ जानता नहीं, ऐसा नहीं है। अपना वेदन स्वयंको प्रत्यक्ष है। केवलज्ञानी पूर्ण प्रत्यक्ष हैं। स्वयं स्वयंको जाने, अन्यको जाने, उनका ज्ञान प्रत्यक्ष हो गया है। क्योंकि उनको मनके विकल्प, रागका अंश मूलमेंसे