Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

४४

मुमुक्षुः- उनका उपकार तो जीवनमें कोई भूला नहीं सकता।

समाधानः- हाँ, बरसों तक वाणी बरसायी, ऐसा अपूर्व मार्ग दर्शाया। आत्माका अपूर्व मुक्तिका मार्ग (दर्शाया)। सबको जागृत किया। पूरे हिन्दुस्तानमें सबको जागृत किया। रुचि बाहरमें क्रियामें थे। भीतरमें मोक्षका मार्ग है। गुरुदेवने बहुत समझाया है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! कर्ताबुद्धि कैसे टूटे? दिन भर करुँ-करुँ कर्ताबुद्धि कैसे टूटे?

समाधानः- कर्ताबुद्धि, ज्ञायकको पीछने तब कर्ताबुद्धि टूटती है। मैं ज्ञाता ही हूँ। ज्ञाताका विश्वास आना चाहिये, ज्ञाताकी प्रतीत आनी चाहिये कि मैं ज्ञायक ही हूँ। मैं तो जाननेवाला, मैं तो उदासीन ज्ञाता ही हूँ। मैं परको कर नहीं सकता। पर तो स्वतंत्र द्रव्य है। पुदगल, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय स्वतंत्र है। उसके गुण-पर्याय सब स्वतंत्र है। मैं किसीको बदल सकूं ऐसी शक्ति मेरेमें नहीं है। सबके पुण्य-पापके उदयसे सब चलता है। तो भी मैं करुँ-मैं करुँ करता है।

मैं तो ज्ञायक हूँ। ज्ञायककी प्रतीत आवे, ज्ञायकका विश्वास आवे, तब हो सकता है। कर्ताबुद्धि टूटे... मैं इतना सत्य परमार्थ कल्याण है कि जितना यह ज्ञान है। ज्ञायकमें संतुष्ट हो, उसमें तृप्त हो, उसमें तू अन्दर देख, अनुपम सुख प्रगट होगा। ज्ञानमात्र आत्मामें संतुष्ट हो जा।

मुमुक्षुः- सत्संग, समागममां महत्त्व श्रीमद राजचंद्रजी बताते हैं, उस पर..

समाधानः- अनादि कालसे अपना पुरुषार्थ मन्द है तो बाहर असत्संगमें ऐसे परिणामकी असर... सत्संगमें यथार्थ विचार करने, सत्य तत्त्व समझनेका योग मिल, सच्ची वाणी मिले, इससे विचार करनेका स्वयंको प्रयत्न हो। यह सत्संगका महत्त्व है। असत्संगमें तो विचार (नहीं चलते हैं)। ऐसे भी पुरुषार्थ मन्द है, जहाँ-तहाँ विचार चले जाते हैं, निर्णय नहीं हो सकता है। इसलिये जिन्होंने मार्ग समझा है, जो मार्ग गुरुदेव दर्शाते थे, यथार्थ बात करते हैं, परिणाम उसमें जाये तो विचार करे, रुचि बढे, ऐसा सब होता है। मैं आत्माको कैसे प्राप्त करुँ? ऐसा तो सत्संगमें हो सकता है।

मुमुक्षुः- अन्दरमें तडप लगे तो ऐसे सत्संगमें जायेगा।

समाधानः- हाँ, स्वयंको तडप लगे, लगनी लगे तो सत्संगमें जायेगा। नहीं तो कुटुम्बमें, व्यापार-धंधामें परिणाम चला जाता है। गुरुदेवने बहुत दिया है।

मुमुक्षुः- वे तो अदभुत कर गये हैं! अभी भी देखे तो कण-कणमें देखकर आँसु बहते हैं। गुरुदेवने चारों ओरसे कितनी करुणा पूरा भारत ...

समाधानः- ४५-४५ यहाँ रहकर.. कण-कणमें गुरुदेव। स्वाध्याय मन्दिरमें विराजते थे। वे विराजते थे तब सब कुछ अलौकिक था।

मुमुक्षुः- बहुत दे गये हैं, गुरुदेव तो दे गये, अब पुरुषार्थ करे यह जीव और