Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

६४ भवका अभाव हो वही सत्य है। उनका तो भव परिवर्तन हो गया। गति अच्छी ही हुयी है। कैसी भावना उनकी, जीवन पर्यंत कार्य, अंत समय तक कैसे भाव और कैसे ... उनका राग रखकर थोडे रहे थे। वे तो ... करते थे, कोई बुरा बोले, कुछ भी करे।

... शासनका सब अच्छा होगा। गुरुदेवका शासन, वह तो महा तीर्थंकरका द्रव्य था। उनके शासनका पुण्य है। भले भावना न हो तो बहुत मुश्किल लगते कार्य हो गये हैं, शासनका पुण्य है, सब अच्छा होगा। भावना हो या नहीं हो, अच्छा होगा। हसमुखभाईका हो गया न।

... कार्य थे, अभी तो अमुक... मुश्किल कार्य सब हो गये हैं। अब तो सबको आत्माका करना है। देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना करनी वह है। स्वयं स्वयंका करना, सब सबकी जाने। सब करते रहे, अपने अपना करना। यहाँ सोनगढमें... जिसको जो करना हो वह करता रहे।

मुमुक्षुः- इतना सलामत रहे उतना बस है। समाधानः- बस, यहाँ सोनगढका यह तीर्थक्षेत्र है, गुरुदेवकी भूमि है। बस, बाहरगाँववाले भले जो करना है करता रहे। जो करना है करे। सोनगढ गुरुदेवका तीर्थक्षेत्र है, वह ऐसी ऊँचा रहे। किसीके साथ राग-द्वेष नहीं करना है। एक सोनगढका यह है। सब स्वाधीनरूपसे देव-गुरु-शास्त्रकी पूजा, भक्ति, स्वाध्याय स्वाधीनरूपसे करते हैं, ऐसे ही ... करते हैं, वैसा ही टिके, बस। कोई उसमें दखल करे कि ऐसा करोया ऐसी क्रिया करो, फलाना करो ऐसी दखल यहाँ चलनेवाली नहीं है। क्रिया करो या ऐसा करो, गुरुदेवका ऐसा करो, चरण स्पर्श करते हैं, प्रतिकृतिको, फलानेको ऐसी दखल नहीं हो। कुछ-कुछ ऐसा चलता रहता है। सब बोलते रहे। सबके गाँवका सब सँभाले।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!
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