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था। गुरुदेवका प्रभाव है न इसलिये। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और अन्दर आत्माको
पहचानना, वह करना है। चतुर्थ कालमें तो मुनि बनकर चल देते थे। जंगलमें जाकर
आत्माकी आराधना करते थे और ध्यान करते थे। छोटे-छोटे बच्चे दीक्षा लेने जाते
हैं। हे माता! हे जनेता! मुझे आज्ञा दे। यह संसार ऐसा है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- मैं ऐसी माता पुनः नहीं करुँगा।
मुमुक्षुः- कोलकरार करता हूँ।
समाधानः- हाँ, कोलकरार करता है। अब तुझे नहीं रुलाऊँगा, अब मैं जा रहा हूँ। हम आत्माकी आराधना करेंगे। इस जीवको अनन्त कालमें क्या नहीं प्राप्त हुआ है? सब प्राप्त हो गया है। माता कहती है, भाई! तू छोटा है। तुझे काँटे और कंकर लगेंगे, तेरा ... तुझे क्या नहीं प्राप्त हुआ? जगतमें सब प्राप्त हुआ है। अब तो मैं आत्माकी आराधना करने जाता हूँ। तेरा शरीर ऐसा है, तुझे उपसर्ग-परिषह आयेंगे, गर्मी-सर्दी लगेगी। तो कहता है कि, क्या नहीं प्राप्त हुआ है? देवलोक मिला और सब प्राप्त हुआ है। अनन्त बार सब सामग्री प्राप्त हुयी है। परन्तु यह एक नहीं प्राप्त हुआ। हमें आत्माके स्वरूपकी आराधना करनी है, अब यह भव नहीं चाहिये। भवका अभाव कैसे हो, यह करनेके लिये मैं जाता हूँ। आत्माकी साधना करनेके लिये मुनिदशा अंगीकार करता हूँ। अब फिरसे माता नहीं करुँगा। जन्म-मरणका अभाव करने जाता हूँ।
यह जन्म-मरण संसारमें होते हैं, वह जीवको एक वैराग्यका कारण है। जन्म- मरण (होते हैं तो भी) जीवको वैराग्य नहीं आता है। जन्म-मरण जीवको वैराग्यका कारण बनता है।
मुमुक्षुः- क्षणभर लगता है। फिर भूल जाते हैं। मैं कल याद करता था, मैं मेरी माँको छोडने आया था, आज मैं पिताजीको छोडने आया हूँ। कल ऐसा विचार आया था। मेरी माँका ... याद आता था,
समाधानः- जन्म-मरण संसारमें ... यह जन्म-मरण नहीं होते तो जीवको वैराग्य नहीं आता। सब शाश्वत मान लेता। परन्तु ऐसा नहीं है। अन्दर भवका अभाव कैसे हो? इसलिये मोक्ष करना वही सत्य है। मोक्ष आत्माकी आराधना... वही सत्य है।
मुमुक्षुः- उस काममें लग जाना।
समाधानः- बस, वही काम करने जैसा है। अरे..! ऐसा संसार अब नहीं चाहिये। भवका अभाव हो वही सच्चा है। अनन्त कालमें सम्बन्ध बान्धता है और छोडता है।