Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

६२ किया है। वह आश्रय वैसे ही परिणतिरूप रह जाता है, निर्विकल्पपने।

मुमुक्षुः- उसे ज्ञानमें ख्याल है कि यह राग है?

समाधानः- अबुद्धिपूर्वक ज्ञानमें कुछ पकडमें नहीं आता। अबुद्धिपूर्वक है इसलिये ज्ञानमें (पकडमें नहीं आता)। केवलज्ञान नहीं है इसलिये वह अबुद्धिमें है। बाकी उसके वेदनमें कुछ नहीं है। उसके वेदनमें मात्र स्वरूपकी अनुभूति ही है, दूसरा कुछ नहीं है। नहीं विकल्पका ख्याल, नहीं है कोई राग, अबुद्धिपूर्वक-बुद्धिपूर्वक कुछ नहीं है। मात्र स्वरूपकी परिणति, शुद्धात्म स्वरूप परिणति है। अकेला आत्मा ही है, दूसरा कुछ नहीं है।

द्रव्य, गुण और पर्याय उसकी परिणति। आनन्दकी अनुभूति है। अनन्त गुण-पर्यायसे भरितावस्थ आत्मा, वह प्रगटरूपसे शुद्ध परिणतिरूपसे परिणमता है। अबुद्धिमें है उसका कोई ख्याल नहीं है। वह तो स्वानुभूतिका अंश प्रगट हुआ, पूर्णता नहीं है। इसलिये वह बताता है कि अभी अबुद्धिमें है। उसके वेदनमें नहीं है। उसके ज्ञानमें भी नहीं है।

मुमुक्षुः- आश्रय निर्विकल्प परिणतिरूप होता है। जैसे अपना नाम अभी रटना नहीं पडता और ... निर्विकल्प परिणतिरूपसे ज्ञायक..

समाधानः- ज्ञानको रटना नहीं पडता, वह दूसरी बात है। उसके वेदनमें वह कुछ नहीं है। उसे तो आश्रय है, द्रव्यका आश्रय है। वह अलग है, यह अलग है। द्रव्यका आश्रय है, अमुक वेदनकी परिणति है।

... फिर तो यात्राकी बात करे, मन्दिरकी बात करे, गुरुदेवकी बात करे, सब पुरानी बातें करते रहे। ... उसके साथ उन्हें संस्थाका उतना रस था। संस्थाका ध्यान रखनेका उन्हें बहुत था। आप सब ध्यान तो रखते हो, सब रखते हो। देव-गुरु-शास्त्रका करनेका सबको है। उन्हें बहुत विकल्प था।

मुमुक्षुः- जो दूरदर्शिता थी, उसमें..

समाधानः- आत्माका करने जैसा है। संसारमें ऐसा ही होता है। गुरुदेवने कहा वह मार्ग ग्रहण कर लेने जैसा है। अन्दर जो संस्कार होते हैं, वह सब साथमें आते हैं। पंचमकालमें गुरुदेव मिले और उनका सान्निध्य मिला वह महाभाग्यकी बात है। देव- गुरु-शास्त्रकी महिमा और शुद्धात्माका ध्येय, शुद्धात्मा कैसे प्रगट हो? वह करने जैसा है। भेदज्ञान कैसे हो? यह पंचमकाल है, उसमें गुरुदेव पधारे वह महाभाग्य। चतुर्थ काल गुरुदेव पधारे इसलिये हो गया था। और अभी भी गुरुदेवके मार्ग पर ही चलना है। किस प्रकार आनन्दसे ... सब बोले। ... रातको करते थे, वही फिर सुबह करते थे, ऐसा करते थे। वहाँ ले जानेके सिवा कोई उपाय नहीं था।

... प्रभावनामें पुण्य हो उस प्रकारसे कार्य बनता है। भावना हो तो। परन्तु तेरे