थी।
मुमुक्षुः- तू परमात्मा है, तू परमात्मा है, तू परमात्मा है। अरे..! भगवान! आप परमात्मा हो, इतना तो नक्की करने दो। ... वह रखी थी। वहाँसे गये न तब। ... मैं परमात्मा हूँ। उसे बहुत अच्छी लगती थी।
समाधानः- सौ इन्द्रकी उपस्थितिके समवसरणमें लाखों-क्रोडो देवोंकी मौजूदगीमें भगवानने कहा है कि तू परमात्मा है। अरे..! भगवान! आप परमात्मा हो, इतना तो नक्की करने दो। तू परमात्मा है, ऐसा भगवान कहते हैं। परमागम मन्दिर पर बजती है, तब सब जगह सुनायी देता है।
मुमुक्षुः- ऐसा गुँजता है न कि मानो गुरुदेव ललकारते हो। गाँवके लोग सब कहते थे। तू परमात्मावला बजाओ न! वह बहुत अच्छा लगता है।
समाधानः- प्रवचनमेंसे उतना अलग किया है।
मुमुक्षुः- खोजकर निकाला।
समाधानः- मैंने क्या महेनत की? टेपमें था। कहा, यह अच्छा है, इतना अच्छा है। ... भाव परसे कह सकते हैं कि देव भव ही होगा, दूसरा नहीं। संसारमेंर जन्म- मरणका चक्र चलता ही रहता है। वैराग्य करने जैसा है। चतुर्थ काल था तब देव आते थे। अभी देव नहीं आते हैं। मेढक हाथीके पैर तले कूचल गया। उसे भगवानकी पूजा करनी थी। देव होकर पूजा करने आता है। वह चतुर्थ काल था।
मुमुक्षुः- विचार करें लेकिन जो बननेवाला हो वही बनता है।
समाधानः- वैसा ही बनता है। जिस क्षेत्रमें, जिस प्रकार, जैसे होनेवाला हो उसी प्रकारसे आयुष्य पूरा होता है। ... ठीक हो जाये ऐसी सबकी भावना होती है।
मुमुक्षुः- .. निर्विकल्परूपसे होता है?
समाधानः- हाँ, निर्विकल्परूपसे है। द्रव्य पर दृष्टि निर्विकल्पपने (है)। शुद्धनय कहते हैं न? शुद्धनय। बस, वह निर्विकल्पपने है और प्रमाण भी निर्विकल्पपने है। दोनों निर्विकल्पपने है। बाकी तो प्रमाण अस्त हो जाता है, नयोंकी लक्ष्मी कहाँ चली जाती है, विकल्पात्मक तो सब छूट गया है। प्रमाण अस्त हो जाता है, प्रमाणका कोई विकल्प नहीं है, नयोंकी लक्ष्मी सब छूट जाता है। अकेला स्वरूप है। उसमें द्रव्यकी मुख्यता और पर्याय साथमें है। द्रव्य और पर्याय दोनोंकी जो अनुभूति है वह प्रमाण है। द्रव्यकी मुख्यतासे वह नय है, बस। बाकी विकल्परूपसे कुछ नहीं है।
मुमुक्षुः- मुख्यता आश्रयके हिसाबसे या जाननेके हिसाबसे?
समाधानः- नहीं, आश्रयके हिसाबसे। आश्रय है, निर्विकल्पपने आश्रय है, निर्विकल्पपने। अनादिकी वस्तु है, उसमें कोई आश्रय नहीं था। आश्रय उसे स्वयंने ग्रहण