Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 80.

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अमृत वाणी (भाग-३)

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ट्रेक-८० (audio) (View topics)

समाधानः- ... न्याल कर दिये हैं, ऐसा बोलते थे। मुझे कोई इच्छा नहीं है, मुझे किसीका लगाव नहीं है, मुझे कोई आकुलता नहीं है। यह एक ही करना है, दूसरा क्या करना है? करना क्या है? ऐसा जोरसे बोलते थे। ...

मुमुक्षुः- और युवान होकर।

समाधानः- हाँ, एकदम। अभी यहाँ सब (होता) हो, वहाँ तो पुष्पशैयामें उत्पन्न होता है। पूरा शरीर बदल जाता है। यहाँ याद आये।

मुमुक्षुः- यहाँके संस्कारमें बन्ध भी वैसा हुआ हो, वैसे ही संयोग देव-गुरु- शास्त्रका (योग हो), वैसा ही बन्ध उसे होता होगा न?

समाधानः- हाँ, उस प्रकारका। वैसी रुचिके संस्कार अन्दरसे उत्पन्न होते हैं। भगवानका मन्दिर, सीमंधर भगवानकी वाणी सुननेका, ऐसे ही संस्कार अन्दरसे उत्पन्न होते हैं। उसे ऐसी ही विचार आते हैं। यहाँ तो मन्दिर आदि कितना.. हर जगह सलाह-सूचना (देते थे)।

मुमुक्षुः- बहुत उत्साहसे देते थे। आ गया, ऐसे नहीं।

समाधानः- वहाँ तो जो अपने संस्कार हो वही उत्पन्न होते हैं। वहाँ शाश्वत मन्दिर होते हैं, भगवान हैं। सीमंधर भगवान विदेहक्षेत्रमें विराजते हैं। वह सब प्रत्यक्ष दिखाई दे, इसलिये वहाँ जानेका मन करे।

गुरुदेवने वषा तक वाणी बरसायी है। अन्दरमें जो घट्ट हो जाये, वही करनेका है। पद्मनंदी आचार्य कहते हैं न कि मेरे गुरुने जो वाणी, जो उपदेश जमाया है, उसके आगे मुझे कुछ नहीं चाहिये। यह तीन लोकका राज भी मुझे प्रिय नहीं है, इन्द्रपद भी मुझे नहीं चाहिये। बरसों तक वाणी बरसायी है। वह जो बरसों तक जमाया है, वह संस्कार लेकर जाये वह संस्कार ही अन्दरसे उत्पन्न होते हैं।

आता है, सौ इन्द्रकी उपस्थितिमें लाखों-क्रोडो देवोंकी उपस्थितिमें भगवानने कहा है कि तू परमात्मा है। ऐसी टेप यहाँ बजती है। तू परमात्मा है। अरे..! भगवान! आप परमात्मा हो, यह तो नक्की करने दो। ऐसा आता है। यहाँ टेप बजती है न। ऐसे प्रसंग होते हैं तब ऐसी टेप यहाँ जोरसे रखते हैं और बजती है। वह टेप रखी