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मुमुक्षुः- उसमें कोई शंका नहीं है, परन्तु आपकी महत्ता उनके हृदयमें कोई अदभुत थी! यह तो हम देख सके हैं। क्या आदर! क्या प्रेम! क्या वात्सल्य!
मुमुक्षुः- इसलिये उनका पूरा लाभ लेना। .. उन्होंने पूछा था, स्वानुभूति कितनी बार... सर्वश्रेष्ठ श्वेतांबर साधु .. गुरुदेव स्वानुभूतिकी बात करे इसलिये... महाराज! स्वानुभूति मतलब क्या? स्वानुभूति जैसी कोई जैन दर्शनमें नहीं है, ये .. स्वानुभूति जैसी कोई चीज नहीं है, उनके ... शब्द। स्वानुभूति क्या है? उसमें क्या होता है? ऐसा पूछा तो कहा, स्वानुभूति जैसी कोई चीज जैन दर्शनमें नहीं है।
समाधानः- संप्रदायमें यह कोई समझता नहीं था। यह सब गुरुदेवने ही प्रकाशित किया है।
मुमुक्षुः- स्वानुभूतिमें तो सिद्ध भगवानके आनन्दका अंश आता है।
समाधानः- संप्रदायमें व्याख्यानमें ऐसा लेते थे।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! पंचाध्यायीमें तो कहा है, यह आनन्द ...
मुमुक्षुः- हमें किसीको शंका नहीं थी। सोनगढमें शान्ति, परम शान्ति है। वजुभाई है न, बस, बात खत्म।
समाधानः- ... इसलिये सबका आना-जाना होता था। एक ज्ञायकके सिवा और क्या है? एक ज्ञायकको ग्रहण करने जैसा है। देव-गुरु-शास्त्र शुभभावमें होते हैं और अंतरमें ज्ञायक। इसके सिवा जगतमें दूसरा कुछ सारभूत नहीं है। सारभूत तो एक ज्ञायक अदभुत अलौकिक है और शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्र होते हैं।