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मुमुक्षुः- सबको भेंट तो दी है, गुरुदेवने चांदीका... मुमुक्षुः- फिर भी यह अंतरकी भेंट है, वह अदभुत है! मुमुक्षुः- उसकी तो क्या बात करनी! मुमुक्षुः- सचमूच कहता हूँ, वह नहीं आ सके, न लिख सके। उसे ... आसान काम नहीं है।
समाधानः- गुरुदेवने समझाया है। इस भवका अभाव कैसे हो। जन्म-मरण करते- करते यह भव मिला, उसमें गुरुदेव मिले, महाभाग्यकी बात है। भवका अभाव होनेका मार्ग बताया। सत्य तत्त्वका स्वरूप बताया, स्वानुभूति बताया, सब उन्होंने बताया है। महाप्रबल जोरदार निमित्त गुरुदेवका (था), उनकी वाणीका निमित्त ऐसा, उन्होंने स्वयं अकेलेने स्थानकवासीमेंसे विचार करके खोज लिया और स्वयं उस रूप परिणमित होकर मार्ग प्रकाशित किया है, वह सब गुरुदेवका प्रताप है।
स्थानकवासी संप्रदायमें थे तब स्वानुभूति पर उतना जोर देते थे कि स्वानुभूति कोई अलग वस्तु है। सम्यग्दर्शन कोई अलग वस्तु है। देहसे, वचनसे, सबसे विकल्पसे भिन्न आत्मा उस पार विराजता है। ऐसा सब बोलते थे। पूरा मार्ग गुरुदेवने स्पष्ट कर-करके प्रकाशित किया है।
मुमुक्षुः- ऐसे गुरुदेव भी जब "बहिनश्रीके वचनामृत' पर प्रवचन करते हैं, तब ऐसा लिखते हैं कि ओहोहो..! बहिनके शब्द इतने सादे, सादे आसान! मैं तो आश्चर्यचकित हो जाता हूँ कि सादा कहकर क्या कहना चाहते हैं? ऐसे गहन विषयको भी बहिनश्रीने क्या लिखा है! पूरा प्रवचन पढा तब अहोभावके सिवा कुछ नहीं होता, बहिनश्री! आप गुरुदेवका ... हम स्वीकारते हैं। परन्तु गुरुदेवके अंतरमें बहिनश्रीके वचनामृत ऐसे उत्कीर्ण हो गये हैं कि बात ही मत पूछिये। उसमें सादा शब्द निकालो तो छः बार आया है, छः बार। सादे फिर भी गहन। सादे शब्द कहकर उनको सचमुच जो कहना है, वह कहनेके लिये सादे शब्द कहाँ खोजना? ऐसा है। इसलिये तब ऐसा होता है कि गुरुदेव...
समाधानः- गुरुदेवने ही मार्ग बताया है, उसमें क्या कहना?
मुमुक्षुः- मार्ग बताया वह बात सत्य है, परन्तु उनका ही यह कहनेका आशय है, वह क्या?
समाधानः- आशय वह जाने, मैं तो उनका दास हूँ। मुझे तो पुरुषार्थ करके उन्होंने जो मार्ग दर्शाया है, उस मार्ग पर आगे-आगे बढना है। गुरुदेवने स्वानुभूति बतायी, गुरुदेवने स्वरूप रमणता, चारित्र, केवलज्ञान आदि सबका स्वरूप गुरुदेवने ही बताया है।