६६ वे तो लोकोत्तर पुरुष थे। आत्मा एक शाश्वत (है), सब पर्यायें पलटती है। ऐसे तो कितने भव जीवने किये हैं, अनन्त। उसमें इस भवमें गुरुदेव मिले वह महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- इतने प्रसंग प्रत्यक्ष देखते हैं, फिर भी इस जीवको वैराग्य कहाँ आता है। अभी दो दिन पहले तो हम लोगोंके साथ बातें करते थे। और आज कहाँ पहुँच गये।
समाधानः- ऐसे फेरफार कैसे होते हैं। अभी इस पूर्णिमा तक तो हमारे घर आये थे। आठ-नौ दिन पहले। फोडे हुए थे, परन्तु कमजोरी होने पर भी आते थे।
मुमुक्षुः- कहते थे, मुझे कहीं चैन नहीं पडती है। वहाँ जाता हूँ तो ताजगी आ गयी। माताजीके पास...
समाधानः- .. वह करना है। कितने बरसों तक यहाँ वाणी बरसायी। वह आता है न? गुरुदेवने जो उपदेश दिया है उसके आगे कोई विशेष नहीं है। तीन लोकका राज भी नहीं, वह भी तुच्छ है। इन्द्रकी पदवी भी विशेष नहीं है। इस पृथ्वीका राज या तीन लोकका राज, पद्मनंदीमें आता है, आलोचना पाठमें आता है। गुरुदेवने जो उपदेश दिया है और अन्दर जो जमाया है, उसके आगे सब (तुच्छ है)। वही ग्रहण करना है।
इस पंचमकालमें ऐसा मिले कहाँसे? गुरुदेवका यहाँ अवतार हो.. तीर्थंकर द्रव्यका यहाँ अवतार हो, और सब मुमुक्षुओंके बीच वाणी बरसाये, बीचमें ऐसा काल आ गया, इस पंचमकालके अन्दर कि उनका सान्निध्य बरसों तक मिला।
मुमुक्षुः- .. उसके जैसा हो गया।
समाधानः- हाँ, ऐसा हो गया।
मुमुक्षुः- बहुत पुण्य हो तब..
समाधानः- तब ऐसा योग बनता है। आचार्य तो पहले बहुत हो गये हैं। परन्तु उनका योग मिलना बहुत (मुश्किल है)। ये तो साक्षात मुमुक्षुओंके बीच रहकर वाणी बरसायी, निरंतर वाणी बरसती थी। वह जो मिला और जो उनका सान्निध्य मिला एवं वाणी मिली, उससे पूरा जीवन सफल होता है। फिर जो कह गये हैं, देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना, वह उनके प्रतापसे सब होता रहता है। महापुरुष थे इसलिये उनके प्रतापसे, उनके पीछे सब भक्तों... उनके प्रतापसे ही सब देव-गुरु-शास्त्रकी प्रभावना होनेवाली है और होती रहती है।
... गुरुदेव और सोनगढ इतना करीब, यह तीर्थक्षेत्र जैसा बन गया है। बहुत तीर्थक्षेत्र होते हैं वह जंगलमें होता है। वहाँ जाना सबको मुश्किल पडे ऐसा होता है। उसके