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नहीं देखता।
...स्वयं ही है, परन्तु स्वयंको कहाँ स्वयंकी प्रतीत है? स्वयं तो है। उसकी लगनी (नहीं है)। उसे आत्माकी अनुभूति नहीं है, आत्माका वेदन नहीं है। इसलिये मुझे आत्माकी स्वानुभूति, आत्माका वेदन मुझे कैसे हो? ज्ञायककी परिणति मुझे कैसे प्रगट हो? है तो स्वयं, स्वयं स्वयंको पहचानता नहीं, भूल गया है। इसलिये जिज्ञासा, लगनी लगे बिना नहीं रहती। स्वयं स्वयंको भूल गया है।
मुमुक्षुः- भगवानके समवसरणमें देवों और इन्द्रों आते हैं, उस वक्त वहाँके जो प्रजाजन होते हैं, तो देवों और इन्द्रोंके साथ मित्राचारी होती है? ऐसा कोई प्रसंग बना था? या ऐसा कुछ हो सकता है? उनके साथ मित्राचारी या...
समाचारः- देवोंको किसीके ऊपर... उसे कोई उपकार हुआ हो और कोई देवको भाव आवे तो कोई मनुष्यका, राजाका पुण्य हो तो उसे ले जाते हैं, मेरु पर्वत पर। ले जाये, परन्तु उसे मित्राचारी हो या ऐसा कोई देवका प्रसंग बने, देव कुछ बात करे, ऐसा बन सकता है। उसके साथ मित्राचारी...
मुमुक्षुः- जो अकृत्रिम जिनालय हैं, वहाँ दर्शन करनेका भाव आवे और बात करे तो ले जाये?
समाधानः- जिसे बहुत भावना हो, उसका ऐसा पुण्य हो तो देवको विचार आता है कि इसे ले जाऊँ।
मुमुक्षुः- आपको अथवा गुरुदेवको ऐसा कोई प्रसंग बना था?
समाधानः- वह कोई बात नहीं। सोलहवें शान्तिनाथ भगवान, उन्हें अगले कोई भवमें देव ले गये हैं। सब मन्दिरोंके दर्शन करवाये हैं। शान्तिनाथ भगवानके जीवको...
मुमुक्षुः- सोलहवें भवमें? समाधानः- अगले भवमें। मुर्गेके रूपमें परीक्षा की है, वह सब प्रसंग आते हैं। देव प्रसन्न होकर, उन्हें विमानमें बिठाकर मन्दिरोंके दर्शन-शाश्वत मन्दिरोंके दर्शन करने ले जाता है। अपने यहाँ चित्र है। नंदीश्वरमें है।