८० पूजामें, शास्त्र श्रवणमें, शास्त्र स्वाध्यायमें सबमें दिखाई देता हो। चतुर्थ गुणस्थानमें गृहस्थाश्रमके कोई कायामें दिखाई देता हो, परन्तु डोरी अपने हाथमें ही है। डोरीको ज्यादा बाहर (नहीं जाने देता)। कोई शुभ कायामें या अशुभमें, डोरी अपने हाथमें है। ज्यादा जाने नहीं देता।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको राग काले नाग जैसा लगता है?
समाधानः- काले नाग जैसा... निज स्वरूपको छोडकर बाहर जाना, सचमुचमें यह विभाव हमारा देश नहीं है, हम यहाँ कहाँ आ गये? हमारा चैतन्यदेश अलग ही है। यह तो काले नाग जैसा, सर्प जैसा है। उपयोगकी डोरी अपने हाथमें रखता है।
मुमुक्षुः- माताजी! मुमुक्षुके पास कोई डोरी है? ज्ञानीके पास तो..
समाधानः- मुमुक्षुके हाथमें क्षण-क्षणमें डोरी तो प्रत्यक्ष उसके पुरुषार्थकी है। मुमुक्षुके हाथमें रुचिकी डोरी हाथमें रखनी। उसकी रुचि मन्द नहीं पड जाये, दूसरे कायामें मुमुक्षुकी भूमिकासे अधिक कोई कायामें, मुमुक्षुको शोभा नहीं दे ऐसे कायामें जाना नहीं। आत्माकी ओर आत्मार्थका प्रयोजन, आत्माका मुझे मुख्य प्रयोजन है। प्रत्येक कायामें मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो, इस प्रयोजनके साथ दूसरा प्रयोजन आ नहीं जाये-कोई लौकिकका या दूसरा कोई या मानादि, ऐसा कोई भी प्रयोजन नहीं आये। मुझे प्रत्येक कायामें आत्माका प्रयोजन है। ऐसी आत्माकी रुचि, आत्माकी रुचि उसके हाथमें है।
वह डोरी तो अलग बात है, वह तो डोरी खीँचता ही रहता है। यहाँ तो रुचिको आत्माके प्रयोजन सिवाय, दूसरे कोई प्रयोजनके कार्य, उसमें लौकिक कार्यका मुझे प्रयोजन नहीं है। एक आत्माका प्रयोजन है। मुझसे रहा नहीं जाता, मैं पुरुषार्थ नहीं कर पाता हूँ, परन्तु मुझे प्रयोजन एक आत्माका है।
... वह ऐसे राह नहीं देखता कि जब मिलनेवाला होगा तब मिलेगा। खाना- पीना आदि नहीं मिलेगा, ऐसे राह नहीं देखता। वह प्रयास करने जाता है। वैसे जिसे भूख लगी हो, वह पुरुषार्थ किये बिना नहीं रहता। जिसे आत्माकी लगी है, आत्माके बिना चैन नहीं पडता, उसकी लगनी लगे वह पुरुषार्थ किये बिना नहीं रहता। आत्माके विचार करे, आत्माकी प्रतीत करनेका प्रयत्न करे, पहचाननेका प्रयत्न करे, आत्मा मुझे कैसे प्राप्त हो, उसका बारंबार अभ्यास करे, पुरुषार्थ करे। काललब्धिकी (राह नहीं देखता)।
मैं पुरुषार्थ करुँ, मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो? ऐसी उसे लगनी लगे, वह राह नहीं देखता। और जो पुरुषार्थ करता है, उसे काललब्धि पक जाती है। पुरुषार्थके साथ काललब्धिका सम्बन्ध है। जो पुरुषार्थकी राह देखता है, उसे आत्माकी लगी ही नहीं।