Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 512 of 1906

 

ट्रेक-

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मिल गया है। अपने घरमें खडा हुआ अपना घर नहीं छोडता। अपने घरमें ही चौबीसों
घण्टे खडा रहता है। घरके बाहर उसके किनारे सब लोग आये, उसके साथ उसका
बोलना आदि व्यवहार करे (लेकिन) अपना घर छोडकर जाता नहीं। घरके बाहर खडे
लोगोंके साथ व्यवहार करे, परन्तु स्वयं अपने घरमें घरमें खडा है। चैतन्यका आश्रय
चौबीसों घण्टे छूटता नहीं। उपयोग बाहर जाये और दूसरा व्यवहार उसका दिखाई दे,
सब शुभाशुभ भाव, गृहस्थाश्रममें सब व्यवहार दिखाई देता है, परन्तु उसका आश्रय
चैतन्यका है। देव-गुरु-शास्त्र आदिमें दिखता हो।

मुमुक्षुः- शुद्धि बढती जाती है?

समाधानः- अंतरकी शुद्धि बढती जाती है। उसकी भूमिका अनुसार उसकी अमुक शुद्धि बढती जाती है। सम्यग्दर्शन है, अमुक प्रकारका स्वरूपाचरण चारित्र है। अधिक शुद्धि उसकी भूमिका पलट जाये तो चारित्रकी शुद्धि विशेष होती है। परन्तु अमुक भूमिका है तो उसकी शुद्धि बढती है, निर्मलता बढती जाती है। स्वयं अपने आश्रयमें ही खडा है।

... अपेक्षासे उसे भेदज्ञान हो गया, स्वरूपाचरण चारित्र है, अनन्तानुबन्धी कषाय टूट गया है, उसे उसकी शुद्धि बढती जाती है। उसका आश्रय वह है। उपयोग बाहर जाये तो उसकी डोर स्वरूपमें खीँचता रहता है। उसे चैतन्यका आश्रय चौबीसों घण्टे है, परन्तु उपयोग निज चैतन्यको छोडकर विशेष बाहर न जाता (क्योंकि) डोरी उसके हाथमें है। क्षण-क्षणमें डोर अपनी ओर खीँचता रहता है। उपयोगकी डोरीको ज्यादा बाहर (नहीं जाने देता), स्वरूपकी मर्यादा छोडकर ज्यादा बाहर नहीं जाने देता। डोरी उसके हाथमें है। बारंबार उपयोग बाहर जाये तो भी अपनी ओर खीँचता रहता है। स्वरूपका घर छोडकर उपयोगको ज्यादा बाहर नहीं जाने देता, उपयोगको बारंबार अपनी ओर खीँचता है।

पतंगकी डोर जैसे हाथमें है। बारंबार अपनी ओर खीँचता है। वह उसका कार्य है। बारंबार उपयोगकी डोरको क्षण-क्षणमें अपनी ओर खीँचता है। स्वरूपका आश्रय है, द्रव्य पर दृष्टि और ज्ञान है। चारित्रमें लीनतामें बारंबार उपयोगकी डोरको अपनी ओर खीँचता रहता है। क्षण-क्षणमें खीँचता है। स्वरूपको छोडकर उपयोगको विशेष बाहर नहीं जाने देता। उसकी परिणतिका अंतर कार्य क्षण-क्षणमें चलता रहता है। उसका वह कार्य छूटता ही नहीं।

स्वानुभूतिकी दशा एक अलग है, निर्विकल्प दशा होती है। परन्तु बाहर खडा- खडा अपनी डोरको स्वरूपकी ओर खीँचता रहता है। उपयोगकी डोरी। उपयोग ज्यादा बाहर नहीं जाने देता। बाहर दिखाई दे सब कायामें, देव-गुरु-शास्त्रकी भक्तिमें, उनकी