अमृत वाणी (भाग-३)
९४ शुभाशुभ भावसे भिन्न एक आत्मा वह कोई अलग तत्त्व है। और वही सर्वस्व है। बाहरमें कहीं भी सर्वस्वपना नहीं है। किसी भी प्रकारकी विशेषता उसे नहीं लगती, आत्माके सिवा। एक आत्मा ही सर्वस्व है। दूसरा कुछ विशेष (नहीं है)। जगतकी कोई वस्तु उसे अलौकिक नहीं लगती, सब लौकिक लगती है। एक अलौकिक तत्त्व आत्मा है। ऐसी अपूर्व रुचि कर सकता है। और इस कारणसे वह सच्चे मार्ग पर जा सकता है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!