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ऐसी रुचि नहीं हुयी।
.. आत्माकी रुचि नहीं हुयी। शुभभाव, थोडा शुभभाव तो होना चाहिये न। शुभभावमें आग्रह रह गया। शुभभाव होता है, जबतक आत्माको नहीं पहचाने, आत्मामें लीनता न होवे, तब शुभभाव आता है। परन्तु उसमें रुचि ऐसी रह गयी कि शुभभाव होना ही चाहिये। ऐसा आग्रह, ऐसी बुद्धि भीतरमें हो गयी। उसकी रुचि हो गयी। सिद्ध भगवानमें शुभभाव नहीं है। सिद्ध भगवान जैसा आत्माका स्वभाव है। (शुभ और अशुभ) दोनोंसे भिन्न आत्माका स्वभाव है। दोनोंसे भिन्न आत्माका स्वभाव है। मुनि हुआ तो भी शुभभावमें रुचि रह गयी। देवलोकमें गया तो भी भवका अभाव नहीं हुआ, देवलोक हुआ।
मुमुक्षुः- माताजी! अनुभव होनेसे पहले मुमुक्षु सच्चा ज्ञान और वैराग्य कर सकता है? अनुभव होनेसे पहले मुमुक्षु सच्चा ज्ञान और वैराग्य कर सकता है?
समाधानः- पहले सच्चा ज्ञान, वैराग्य कर सकता है। परन्तु यथार्थता, वास्तविक यथार्थता तो उसे सम्यग्ज्ञान हो तब यथार्थता कह सकते हैं। लेकिन उस यथार्थताकी भूमिका मुमुक्षुतामें कर सकता है। यथार्थता प्रगट हो, उससे पहले यथार्थताकी भूमिका, यथार्थताके मार्ग पर जा सकता है।
उसे अंतरमें रुचि, भले अन्दरसे गहरी प्रतीति आत्माका आश्रय यथार्थ सम्यग्दर्शनमें जो ग्रहण किया वैसी नहीं है, तो भी उसके मार्ग पर वह जा सकता है। मार्गानुसारी हो सकता है। यह शुभाशुभ भाव मेरा स्वरूप नहीं है। मेरा स्वरूप एक चैतन्यतत्त्व कोई अपूर्व महिमावंत तत्त्व है। उसकी महिमा आये, उसकी अपूर्वता लगे, मैं कोई अदभुत तत्त्व हूँ, उसकी महिमा लगे। यह शुभाशुभ दोनों भाव आकुलतामय हैं, यह दुःखमय हैं। ऐसे विचार, ऐसी प्रतीति भी कर सकता है।
ज्ञान-वैराग्य यथार्थ कर सकता है कि जिसके पीछे उसे अवश्य सम्यग्दर्शन हो, ऐसी भूमिकाको वह प्राप्त कर सकता है। पानीकी शीतलता दूरसे दिखती है। पानीके पास पहुँचा नहीं है। उसकी शीतलता,... उसके अमुक लक्षणसे नक्की करे कि यह ज्ञायक स्वभाव, जाननेवाला स्वभाव कोई अदभुत तत्त्व है, वह कोई अलग ही है। उसका निर्णय (करने तक) अभी पहुँच नहीं पाया है। तो भी वह कर सकता है। अमुक प्रकारसे निर्णय कर सकता है। इस कारण, उस सम्बन्धित ज्ञान, उस प्रकारका वैराग्य, विरक्ति, उस प्रकारकी महिमा करके वह मार्गका अनुसरण कर सकता है।
... कार्य तक पहुँचनेसे पहले उसके जैसी भूमिकामें सच्चे मार्ग पर जा सकता है। कोई अपूर्व रुचि हो, अपूर्व देशनालब्धि अंतरमेंसे हो कि मार्ग तो यही है। ये