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वैसे ज्ञानीकी भक्ति-राग अर्थात अंतरकी भक्ति अर्थात अंतरमें उसे निमित्तमें ज्ञानीकी भक्ति, अंतर ज्ञायककी भक्ति आ जाती है। ऐसा सम्बन्ध होता है, इसलिये निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। प्रीति अंतरकी, रुचि और प्रीति अंतरकी लेनी।
अनन्त कालसे सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है, तो कोई देव और गुरुके उपदेशसे देशनालब्धि (प्राप्त होती है), वह निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। करे स्वयंसे, पुरुषार्थ स्वयंको करना है। स्वतंत्र, प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। कोई किसीको कर नहीं देता। परन्तु ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है कि साक्षात वाणी मिले। देवकी अथवा गुरुकी वाणी मिले तो जीवको अंतर देशनालब्धि होकर उसे परिणति पलटनेका कारण बनता है।
... बीजलीके चमकारेकी भाँति चले जाये, ऐसा होता है। थोडा फेरफार हो, किसीने पानीको छू लिया, किसीने हरी वनस्पति छू ली, ऐसा ख्याल आये तो बोले नहीं कि छू लिया, ऐसे ही चल देते थे। ऐसा लगे कि क्यों चले गये? जिसे घर पधारे हो उसे इतना दुःख लगता है...
... आत्माका ही करना है, ऐसा ध्येय था। वही सच्चा है। आत्माके ध्येयसे ही सब करना है। हिम्मतभाईको वह है, आत्माका ध्येय। जो कुछ करना है, आत्माके ध्येयसे करना है। किसीको कुछ कहना नहीं। क्या कहना?
... अपना करना है। दूसरेको दिखानेके लिये नहीं करना है, स्वयंको करना है। भवका अभाव कैसे हो और आत्मा कैसे प्राप्त हो, वही करना है। भेदज्ञान करके आत्मा कैसे पहचानमें आये, वही करना है। सुख और आनन्द सब आत्मामें भरा है, बाहर तो कहीं नहीं है। ऐसी जोरदार वाणी, दूसरोंको आत्माको आश्चर्य लगे और विभाव चूर-चूर हो जाय, ऐसी उनकी वाणी थी। स्वयं पुरुषार्थ करे.. श्रवण करे उसे रुचि प्रगट होनेका कारण बने।
मुमुक्षुः- सुनते ही दिगंबर बन जाय, ऐसी वाणी।
समाधानः- यह कहते हैं वह सत्य ही है। .. क्रमबद्ध ऐसा होता है कि पुरुषार्थ स्वयं करे तो हुए बिना रहे ही नहीं। क्रमबद्ध... बाहर देखनेवाला स्वयं अपना बचाव करके अटक जाता है। क्रमबद्ध...
तुझे क्या काम है? तू तेरा ज्ञायकपना प्रगट कर, ज्ञायककी परिणति प्रगट कर। कर्ताबुद्धि छूटकर ज्ञायकता प्रगट कर और भेदज्ञान प्रगट करके, द्रव्य पर दृष्टि करके भेदज्ञानपूर्वक आत्मामें लीनता कर। उससे भिन्न होनेका प्रयत्न कर तो हुए बिना रहता नहीं। स्वयं करे उसे क्रमबद्ध रोकता नहीं। उसे काललब्धि भी रोकती नहीं और क्रमबद्ध भी रोकता नहीं। कोई रोकता नहीं। स्वयं अपने कारण रुका है। अपनी मन्दतासे, अपने ही कारणसे प्रमादसे स्वयं छूटता नहीं। स्वयं पुरुषार्थ करे तो छूट सके ऐसा है।