अमृत वाणी (भाग-३)
१२८ आ गयी तो उसे स्वानुभूति भी होती है और आगे भी बढता है। केवलज्ञान पर्यंत पहुँच जाता है।
शिवभूत मुनि ज्यादा नहीं समझते थे। मूल प्रयोजनभूत समझ लिया तो आगे बढ गये। एकान्त ऐसा नहीं है कि ज्यादा ज्ञान हो तो ही आगे बढ सके। ऐसा एकान्त नहीं है। चारित्र उसमें प्रगट हो जाय, कम ज्ञान हो तो भी। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र सब....
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!