Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 91.

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ट्रेक- ९१ (audio) (View topics)
ट्रेक-९१

समाधानः- ... व्यवहारकी ओरकी बात करते हो, इसलिये व्यवहारका कहते हैं और अध्यात्मका (नहीं कहते हैं), ऐसा नहीं कह सकते। सबका आशय एक ही होता है। मैंने श्रीमदका कम पढा है। सब मुक्तिके मार्ग पर भावलिंगी मुनि चलते थे। कोई व्यवहार शास्त्रोंकी (बात) करे, कोई व्यवहारके शास्त्र लिखे, कोई व्यवहारकी बात करे और कोई अध्यात्मकी, अतः कोई ऐसा कहते हैं, ऐसा कहते हैं, ऐसा नहीं होता। सबका आशय एक ही होता है।

समाधानः- ... वस्तुकी महिमा आनी चाहिये। उसका प्रयोजनभूत ज्ञान और उसकी विभावसे विरक्ति हो। विरक्ति हो इसलिये महिमा आये बिना रहती नहीं, परस्पर बात है। चैतन्यकी महिमा और प्रयोजनभूत ज्ञान, बाहरसे निःसार (लगे), जो विभाव है उससे भिन्न पडे। यह सब उसे लाभका कारण है।

अंतरमें चैतन्यकी महिमा और बाहरमें जो देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं और देव-गुरुने जो चैतन्यदेव प्रगट किया है, जिन्होंने प्रगट किया है, उनकी भी महिमा उसे शुभभावमें होती है। और अंतरमें चैतन्यकी महिमा। जिन्होंने प्रगट किया वे साधना साधते हैं, ऐसे देव-गुरुकी महिमा उसे शुभभावमें होती है। वह होती है।

... लगनी लगाये और जबतक प्रगट नहीं होता तो देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, शास्त्र चिंतवन, गुरुकी वाणी आदि सब उसे शुभभावमें होता है। नहीं तो अशुभभावमें चला जाय। शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्र उसे होते हैं। शास्त्रका चिंतवन, मनन, गुरुदेवकी वाणीका बारंबार विचार करना, वाणी सुननी, उसे ध्येय आत्माका (होना चाहिये)। पुरुषार्थ तो अन्दरमें करना है। लेकिन जबतक वह प्रगट नहीं होता, तबतक यह सब उसके साधन हैं।

... प्रयत्न करे कि यह ज्ञान है वही मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। दृष्टि बदलनेका प्रयत्न करे। अनादिकी एकत्वबुद्धि है, वह दृष्टि बदलनी उसे मुश्किल पडती है। अनन्त काल गया फिर भी स्वयं अपनी ओर आया नहीं है और अपनी ओर पुरुषार्थ नहीं किया है। पुरुषार्थ करे तो प्रगट होता है। पुरुषार्थ किये बिना प्रगट नहीं होता। अन्दर वास्तविकरूपमें लगी नहीं है, इसलिये प्रगट नहीं होता है। पुरुषार्थ करे तो प्रगट होता