Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१७२ सिवा कहीं भी थोडा भी सुख नहीं है। और ऐसे ... करता नहीं।

समाधानः- नक्की किया कि उसमें सुख नहीं है, वह नक्की विचारमें रहा, नक्की किया कि सुख नहीं है। परन्तु वह सुख नहीं है तो उसका कार्य, ज्ञायकको ग्रहण करके ज्ञायकका आश्रय जो उसे अंतरमें आना चाहिये, ज्ञायकका आश्रय नहीं हुआ है। ज्ञानस्वभाव हूँ, ऐसा निर्णय किया, लेकिन ज्ञानस्वभावरूप होनेका प्रयत्न नहीं करता है।

मुमुक्षुः- आपसे यह जानना है कि ज्ञायक होनेका प्रयत्न अथवा ज्ञायक होता नहीं है, तो ज्ञायक कैसे होना?

समाधानः- उसका आश्रय नहीं लेता है। उसे क्षण-क्षणमें जो विचार, विकल्प आवे उस विकल्पमय ही स्वयं हो जाता है, उस वक्त भिन्न कहाँ रहता है? जो- जो विकल्प आवे, विचार आवे, उस विकल्पमय एकमेक हो जाता है। नक्की किया कि मैं तो यह जाननेवाला ज्ञानस्वभाव हूँ। कोई भी विकल्प, विचार आवे उसमें एकमेक होता है। जो-जो विचार आते हैं उस वक्त विचार करके देखे तो एकमेक हो जाता है, थोडा भी अन्दर भिन्न नहीं रहता है। भिन्न हूँ, ऐसा नक्की किया तो उसका एकत्वबुद्धिका रस कम हुआ, सब हुआ, मन्दता हुयी, लेकिन वह भिन्न नहीं रहता है। भिन्न रहनेका भेदज्ञानका प्रयत्न नहीं करता है। नक्की किया कि मैं भिन्न हूँ। नक्की तो किया, भिन्न हूँ। लेकिन भिन्न रहनेका प्रयत्न नहीं करता है।

मुमुक्षुः- दूसरा प्रयत्न तो माताजी! एकाग्रता हो और विकल्प टूटे तो निर्विकल्प अनुभव हो, तो-तो ऐसा लगे कि ज्ञानरूप रहा। जबतक राग टूटे नहीं तबतक तो शास्त्र कहता है और आप कहोगे कि एकताबुद्धि है और रागको तू तेरा मानता है। अभ्यास चाहे जितना करते हो, भिन्न रहनेका प्रयत्न करते हो, तो आपको बीचमें एक बात करता हूँ कि, ऐसा साधन है कि...

समाधानः- भिन्न होकर विकल्प टूटे वह निर्विकल्प होता है, वह तो होता है, लेकिन उसके पहले उसका भेदज्ञानका अभ्यास नहीं है। भेदज्ञानका अभ्यास। वह विचार करे, शरीर जब काम करता हो, काम करता हो, बोलता हो, खाता हो, पीता हो उस वक्त उसे ख्याल रहता है कि मैं भिन्न हूँ? प्रतिक्षण ख्याल रहता है? भेदज्ञानका अभ्यास कहाँ करता है? यह शरीर भिन्न, यह भिन्न, विकल्प भिन्न, राग भिन्न, उससे मैं भिन्न हूँ, ऐसा उसे बार-बार उसकी परिणतिमें आता है? उसका अभ्यास तो पहले होता है न? एकदम निर्विकल्प हो वह क्वचित किसीको होता है। एकदम भेदज्ञान होता है और निर्विकल्प हो जाता है। पहले तो उसका अभ्यास होता है।

मुमुक्षुः- आपको तो ऐसा कहना है कि इतना नक्की करनेके बाद बारंबार भेद अभ्यास होना चाहिये?