Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

१९६ कही हुयी बात है अर्थात वस्तुका स्वरूप ही ऐसा है। सब बहुत कहते हो न, उसमें ऐसा आ गया है।

मुमुक्षुः- गुरुदेवको तो बहुत ही अनुमोदना हुयी थी। चौदह ब्रह्माण्डका नाश हो जाय।

समाधानः- हाँ, ब्रह्माण्डका नाश हो जाय, वस्तुका नाश हो जाय, यदि उस रूप कार्य न आवे तो। जो द्रव्य हो, वैसी उसकी भावना हो तो वैसी परिणति हुए बिना रहती नहीं।

मुमुक्षुः- माताजी! भावना तो सबकी सम्यग्दर्शन प्राप्त करनेकी दिखती हो तो उसका...?

समाधानः- वह भावना नहीं, यह भावना अलग है। ऐसी भावना। वह भावना ऐसी होती है कि अन्दरसे मार्ग हो ही जाय। अपना द्रव्य अन्दरसे मार्ग किये बिना रहे नहीं। वह भावना ऊपरकी नहीं, अंतरकी भावना हो उसमें कार्य आये बिना रहता ही नहीं। अंतरका सच्चा कारण हो तो कार्य आये बिना रहे ही नहीं। ऐसा वस्तुका सिद्धान्त है। कारण ही यथार्थ नहीं है तो कार्य कहाँसे हो? एक ही मार्ग है, इसलिये अनन्त तीर्थंकरोंकी बात उसमें आ गयी है।

मुमुक्षुः- वर्तमानमें बीस तीर्थंकर वही कर रहे हैं और भविष्यमें तीर्थंकर होंगे वे यही बात करेंगे।

समाधानः- सब यही बात कहेंगे। भगवानकी वाणीमें अनन्त रहस्य आता है। उसमें वस्तुका स्वरूप ऐसा है कि द्रव्य स्वयं, स्वयंकी भावना अनुसार परिणति किये बिना रहता नहीं। द्रव्य स्वयं स्वतंत्र है और स्वयंसिद्ध है। अपने आप परिणतिकी गति करता है। .. वह भावना अलग है।

मुमुक्षुः- आत्मभावना भावता जीव लहे केवलज्ञान, वह भावना।

समाधानः- हाँ, वह भावना। आत्मभावना भावता लहे केवल, वह भावना अलग। अतंरकी परिणतिकी भावना अलग है। स्वयं ही मोक्षके पंथ पर अपना कार्य शुरू कर देता है।

मुमुक्षुः- ...पढते समय आपकी दृढता और उसका जोर कोई अलग ही लगता है।

समाधानः- उस दिना आ गयी है। भावनाकी कुछ बात हुयी, उसमेंसे उस वक्त आ गया है।

मुमुक्षुः- माताजी! कोई-कोई बार आपके मुखसे ऐसी बात निकल जाती है कि अन्दर चोंट लग जाय। ऐसी सुन्दर रीतसे बात आ जाती है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!