Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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है, ऐसा भाव होता है। क्षेत्र क्या करे? क्षेत्र किसीका कुछ कर नहीं देता। अपना भाव ऐसा रहे तो अपनी योग्यता, अपना दोष है, तीर्थ क्या करता है? कोई निमित्त कुछ कर नहीं देता। निमित्त कर ही नहीं देता है, निमित्त कुछ कर नहीं देता है। अपने उपादानकी तैयारी होवे ऐसा होता है।

मुमुक्षुः- कहते हैं, यहाँ आकर आपके दर्शन हुए तो शान्ति हो गयी।

समाधानः- ... बहुत किया, आत्माको नहीं पहचाना। आत्माको पीछाना नहीं।

मुमुक्षुः- यात्रा तो..

समाधानः- भाव आवे, करे यात्रा। शुभभाव है।

मुमुक्षुः- शुभभाव आनेसे यात्रा करते हैं।

समाधानः- तीर्थमें भगवान है? अपने भगवानको पीछानना चाहिये। आत्माको नहीं पहचानता है। भगवानको देखकर अपना भाव अच्छा होना चाहिये।

मुमुक्षुः- हम भी वैसे ही बने।

समाधानः- भगवान जैसे होवे, ऐसा होना चाहिये। ॐ भगवानकी दिव्यध्वनि है। भगवानकी वाणीमें ॐ आता है। एकाक्षरी वाणी भगवानकी वाणी है। उसमें सब अनन्त रहस्य आता है। सब अपनी योग्यता अनुसार समझ लेते हैं। ॐ है। पंच परमेष्ठीका मन्त्र, सब ॐमें आ जाता है। ॐ भगवानकी वाणी है। भगवानको केवलज्ञान होता है तो वाणी ऐसे क्रम-क्रमसे निकलती है, ऐसे भगवानकी वाणी क्रम-क्रमसे नहीं निकलती है। एक ॐ निकलता है। उस ॐमें सब अनन्त रहस्य आता है। उसमें इतना अतिशय रहता है कि सब अपनी भाषामें सब समझ लेते हैं। ऐसी भगवानकी वाणी ॐ है।

मुमुक्षुः- ॐको अरिहन्त अवस्थामें भी ध्याया जाता है?

समाधानः- अरिहन्त अवस्थामें उसका ध्यान नहीं होता है, ॐ भगवानकी वाणी है।

मुमुक्षुः- वाणी है?

समाधानः- वाणी है, वाणी है। भगवानको तो पूर्ण केवलज्ञान हो गया। भगवान ॐका ध्यान नहीं करते, भगवानकी वाणी ॐ है।

समाधानः- ... तब कुछ काम नहीं आता। संसार तो ऐसा है। जन्म-मरण संसारमें है। जो जन्म और मरण संसारमें है। आयुष्य सबके पूरे होते हैं। परन्तु इस मनुष्य जीवनमें आत्माकी रुचि हो वही लाभरूप है। बाकी तो संसार ऐसा ही है। जीवनमें कुछ आत्माकी रुचि की हो, अन्दर संस्कार बोये हो, गुरुदेवने जो वाणी बरसायी है, वह स्वयंने ग्रहण की हो तो मनुष्य जीवन सफल है। बाकी जीवनमें सबको यही करने जैसा है, मनुष्य जीवनके अन्दर।