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अनन्त जन्म-मरण हुए। जन्म-मरण तो संसारमें है ही। भवका अभाव कैसे हो, यह करने जैसा है। गुरुदेवने भवका अभाव कैसे हो, यह मार्ग बताया। अनन्त भव हुए, वह भव इतने अनन्त हुए कि उसकी कोई सीमा नहीं है। निगोदमें अनन्त काल रहा। अनन्त नर्कमें हुए, अनन्त मनुष्य, अनन्त तिर्यंच और अनन्त देवके हुए। ऐसा चार गतिका परिभ्रमण खडा है। उसमेंसे भवका अभाव कैसे हो, यह गुरुदेवने मार्ग बताया कि अंतरमें तू देख, आत्माको पहचान, उसका भेदज्ञान कर तो भवका अभाव हो।
बाकी भवका अभाव... बाहरसे जीवने बहुत किया है। शुभभाव किये, क्रियाएँ की परन्तु अंतर दृष्टि नहीं की। अंतर दृष्टि करके आत्माको पहचाने, सब शुभाशुभ भावसे भिन्न अन्दर आत्मा है उसे पहचाने, उसका भेदज्ञान करे तो भवका अभाव होता है। वह जब तक न हो तब तक उसकी रुचि करे, जिज्ञासा करे, लगन लगाये। अशुभभावसे बचनेके लिये शुभभाव आते हैं, परन्तु वह भी आत्माका स्वरूप नहीं है। अन्दरमें शुद्धात्माकी रुचि रखनी वही है। शुभभावमें जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र उनकी महिमा, शास्त्रका चिंतवन, वह सब जीवनमें करने जैसा है। शुद्धात्मा कैसे पहचानमें आये, भवका अभाव उसीसे होता है। अन्य कोई प्रकारसे भवका अभाव नहीं होता।
अनन्त कालमें सब मिला है। यह एक सम्यग्दर्शन दुर्लभ है। जिनेन्द्र देवके दर्शना (नहीं किये)। जिनेन्द्र देवका योग हुआ है लेकिन स्वयंने पहचाना नहीं है। इसलिये सम्यग्दर्शन है वही अपूर्व है। वह कैसे हो, उसकी लगन, जिज्ञासा आदि करने जैसा है। सबके आयुष्य पूर्ण होते हैं। देवलोकका सागरोपमका आयुष्य भी पूरा हो जाता है। और चक्रवर्तीका आयुष्य भी पूरा हो जाता है। तो फिर इस पंचमकालका आयुष्य तो क्या हिसाबमें है? उनकी जो रुचि थी, अन्दर संस्कार थे वह अपने साथ जाते हैं। मनुष्य जीवनमें यही करने जैसा है। किसीको छोडकर स्वयं आता है, स्वयंको छोडकर दूसरे चले जाते हैं। ऐसा संसारमें चलते ही रहता है। आत्माका स्वरूप पहचान लेने जैसा है।
मुमुक्षुः- पहलेकी सब कैसेट बतायी। गुरुदेवश्री और आपकी, एवं जिन मन्दिरका सब था, मेरे पास एक विडीयो कैसेट है। पहलेकी सब कैसेट देखी। क्योंकि सोनगढ लेकर आये ऐसी स्थिति नहीं थी।
समाधानः- विडीयोमें तो भगवान दिखे, सब दिखे।
मुमुक्षुः- सम्मेदशीखर आदि जो बडे-बडे तीर्थ थे सबकी पूरी कैसेट थी, वह सब तीर्थस्थान दिखाये।
मुमुक्षुः- यहाँ सोनगढ पर उसे भाव बहुत था।