२४४ होती है?
समाधानः- निर्विकल्प दशा श्रुतज्ञानमें होती है। मतिज्ञानमें निर्विकल्प हुआ वह तो एक शास्त्रकी बात हुयी कि मति होनेके बाद श्रुत होता है। मति भी आता है और श्रुत भी आता है। मतिका उपयोग पलटकर श्रुत हो जाता है। मति सामान्य होता है, फिर विशेष परिणतिरूप श्रुत होता है। फिर मति भी निर्विकल्परूप होकर श्रुत हो जाता है। ऐसा भी होता है। मति मात्र सविकल्प ही होता है और निर्विकल्प नहीं है। मति और श्रुत साथमें है। मति भी निर्विकल्परूप परिणमता है, फिर उपयोग विशेषरूप परिणमता है इसलिये श्रुत हो जाता है।
... दोनों आत्म सन्मुख किया। इतने अंतर्मुहूर्त कालमें होता है। दर्शनउपयोग, मति और श्रुत सब हो जाता है। .. वह तो केवलज्ञानीके ज्ञानमें होता है। वह कोई अन्दर ज्ञान नहीं होता है। ... स्पष्टपने ग्रहण करना। वहाँ ज्ञानके भेद नहीं पडते। एक ज्ञानउपयोग रहता है। विकल्प छूटकर इतने अंतर्मुहूर्त कालमें दर्शन, मति और श्रुत सब हो जाता है। और परिणतिका तो वेग तीव्र है। एक समयमें जो लोकालोकको जानता है। अन्दर स्वरूपमें जाते ही अंतर्मुहूर्तमें परिणति होनेमें देर नहीं लगती।
मुमुक्षुः- पूछे तो कहते थे कि श्रुतज्ञानमें और केवलज्ञानमें फर्क क्या रहा? सब श्रुतज्ञानमें जाननेमें आ जाय तो केवलज्ञानमें और उसमें..?
समाधानः- उसमें क्या फर्क रहा? .. वह ग्रहण करनी होती है। बाकी युक्तिमें आये ऐसी बात है। वह कोई अनुभूतिमें उसके नाम नहीं होते। सामान्य और विशेष परिणति, ऐसा उसे युक्तिसे कह सकते हैं। सामान्य होकर विशेष होती है। मतिको आत्म सन्मुख किया और श्रुतको आत्मसन्मुख किया। दोनों परिणतिको समेटकर स्वयं आत्म सन्मुख करता है। आत्म सन्मुख करे वहाँ तो विकल्प छूट जाते हैं। दोनोंको आत्म सन्मुख किया।
... उसे श्रुतज्ञान परिणमा है। दोनों उपयोग साथमें तो रहते नहीं। उसमें आचायाकी कितनी बात आती है। उसमें जो ग्रहण हो, वह तो शास्त्रोंकी बात है। ... दर्शनउपयोग सामान्य एक सत्तामात्र होता है। मतिमें अवग्रह, इहा, अवाय, धारणा सब होता है तो भी उसे सामान्य कहा और उससे विशेष तर्कणाको श्रुत कहा। वह सब भगवानकी वाणीमें आया है। आचायाने परंपरासे सब शास्त्रोंमें गूँथा है।
मुमुक्षुः- उसमेंसे बहुभाग शास्त्रसे प्रमाण करना पडे।
समाधानः- शास्त्रसे प्रमाण करना पडे। ... उसमें तो भेदज्ञान कि यह ज्ञानस्वभाव जो लक्षणसे ग्रहण होता है अथवा यह विभावस्वभाव दुःख और आकुलतारूप है। अन्दर सुख और शान्ति आत्मामें है।