Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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आत्मा अनन्त गुणसे भरपूर द्रव्य-गुण-पर्याय आदि सब उसे वेदनसे आकुलतारूप है। अमुक उसे युक्तिसे, सिद्धान्तसे वह सब नक्की हो सकता है। बाकी कुछ तो शास्त्रोंसे नक्की करना होता है। वह सब उसे युक्तिसे नक्की होता है और वह युक्तियाँ सम्यक होती है। .. वह सब अनुभवमें आता है। इसे मति कहते हैं अथवा श्रुत कहते हैं, वह शास्त्र आधारित है।

मुमुक्षुः- वह पूरा विषय शास्त्रका है।

समाधानः- शास्त्र पर है।

मुमुक्षुः- अनुभवमें ख्यालमें लेनेका प्रयत्न कर कि मैं भिन्न हूँ और यह भिन्न हूँ। तो तुझे बादमें सहजता होगी। कार्य कठिन है, फिर भी उसके सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है।

समाधानः- दूसरा कोई उपाय नहीं है, अस्तित्वको ग्रहण करनेका। पद-पदमें, क्षण-क्षणमें उसे ही ग्रहण करना। वह कार्य कठिन होने पर भी उसके बिना छूटकारा नहीं है।

मुमुक्षुः- बाकी तो आपने ऐसी सुन्दर लाइन दी है कि किसी वस्तुमें संतोष नहीं होता। और ऐसा रहा करता है कि जो वास्तवमें करना है वह तो होता नहीं है। हम मानते थे, लेकिन पद-पदमें जितना हो सके भिन्न पडनेका प्रयत्न करे कि मैं तो भिन्न ज्ञायक हूँ। यह सब भिन्न है। वह भी भीगे हृदयसे अर्थात वीतरागताके प्रयोजनसे।

समाधानः- भीगे हृदयसे। प्रथम भूमिका विकट होती है। लेकिन पुरुषार्थ किये बिना छूटकारा नहीं है। सहज होनेके बाद उसे सुगम हो जाता है। प्रथम भूमिकामेंसे उसे पलटना चाहिये। अनादिका अभ्यास है उसमें ऐसी एकत्वबुद्धि उसकी ऐसी हो गयी है कि उसमेंसे भिन्न करना उसे कठिन पडता है। जैसा उसमें क्षण-क्षणमें एकत्व भूलता नहीं है, वैसा सहज स्वयंको करना कठिन पडता है। क्योंकि अनादिसे ऐसे पलट गया है, उसे पलटना कठिन पडता है। इसलिये प्रथम भूमिकामें उसे विकट लगता है, परन्तु सहज हो तो उसे सुगम पडता है। बादमें उसे उतनी विकटता नहीं होती। परन्तु उसकी प्रथम भूमिका विकट ही होती है।

मुमुक्षुः- व्यायाम करना पडे। कसरत करनी पडे।

समाधानः- प्रथम भूमिका विकट होती है। जिस किसीको अंतर्मुहूर्तमें होता है, वह अलग बात है। लेकिन जहाँ प्रयाससे करना है वहाँ तो उसे प्रयास ही करना पडता है। तो कार्य होता है।

मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर, माताजी! हररोज जितना विचार करते हैं, उतनी उसकी