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समाधानः- जानना-देखना है, लेकिन उसकी जानने-देखनेकी दशा केवलज्ञान कहाँ है? वह तो अभी भ्रान्तिमें जानता-देखता है। आत्मा स्वयं अपनेको जानता है। भ्रमण करे वह सब क्या करते हैं, वह जानने नहीं आता। जानने नहीं आता।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- जहाँ उसका निश्चित हुआ हो, जैसा कर्मबन्ध हुआ हो उस अनुसार जाता है। यहाँ देखने नहीं आता। वैसा जानना-देखना तो वैसी निर्मलता हो तो जाने- देखे। ... जानता नहीं है।
मुमुक्षुः- .. वह जाने तो सही न?
समाधानः- निर्मल हो तो जाने। एक समय, दो समय, तीन समयमें चले जाता है। वहाँ अंतर्मुहूर्तमें उत्पन्न हो जाता है। ... कुछ समय जीव भटकता है, फिक्षर उत्पन्न होता है। उसमें आता है।
केवलज्ञानी यानी पूर्ण दशा पराकाष्टा हो गयी। उन्हें फिर कुछ करना बाकी नहीं है। पूर्ण साधना हो गयी, कृतकृत्य हो गये।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- किसीको होती है, किसीको नहीं होती है।
मुमुक्षुः- उसमें भी ॐ निकलता है?
समाधानः- हाँ, सबको ॐ निकलता है। कोई मूककेवली होते हैं वह अलग है, होती है, सामान्य केवलीको वाणी होती है। केवलज्ञानीकी वाणीकी वर्षा तो सबकी होती है। वह तो अंतर पूरा ज्ञान निर्विकल्प हो गया, निरिच्छक हो गया। सबको ॐ ध्वनि ही होती है। समवसरणकी विभूति वह ... गंधकूटी होती है, वह सब उनके योग्य अमुक प्रकारसे होता है।
अनेक देह धारण किये। एक देहकमें जानेके बाद दूसरा देह भूल जाता है। जहाँ दूसरा देह धारण करे तो पूर्व भवका भूल जाता है। क्योंकि उसमें पड जाता है इसलिये पूर्व भव भूल जाता है। जीवने ऐसे अनन्त भव किये।