२४८ धारण ही नहीं करना है। यह देह है, देह छूटकर (मुक्तिको प्राप्त होंगे)। उनका शरीर ही भिन्न हो गया है। वे तो बोले भी अलग, जमीन पर भी नहीं चलते हैं, केवलज्ञानी तो जमीनसे ऊपर चलते हैं। ऊपर आकाशमें चलते हैं। केवलज्ञानी यहाँ तो दिखाई भी नहीं देते।
मुमुक्षुः- जीव छूटनेके बाद ... तुरन्त दाखिल होता है या थोडा काल जाता है?
समाधानः- नहीं, काल नहीं जाता है। जीव यहाँसे छूटनेके बाद तुरन्त दूसरी गतिमें जाता है। बीचमें रुकता नहीं। तुरन्त ही दूसरी गतिमें जाता है। फिरनेका कोई कारण नहीं है। उसे तुरन्त ही जिस प्रकारके कर्म हो, जैसी गतिका बन्ध हो उसी गतिमें उसी समय उत्पन्न हो जाता है। एक अंतर्मुहूर्तमें।
मुमुक्षुः- दूसरी गति तो होती ही है? सम्यग्दृष्टि हो तो भी?
समाधानः- हाँ, उसकी गति होती है। क्योंकि अभी पूर्ण नहीं है। सम्यग्दृष्टि यानी पूर्ण दशा नहीं है। स्वानुभूति होती है, परन्तु स्वानुभूतिमेंसे बाहर आते हैं।
मुमुक्षुः- थोडी क्षण आये फिर चला जाता है?
समाधानः- स्वानुभूति होती है, फिर बाहर आता है। बाहर आता है तो भी उसकी दशा अलग रहती है। परन्तु स्वानुभूति उसे पूर्णरूपसे टिकती नहीं है, इसलिये उसे भव होता है। केवलज्ञानीको तो स्वानुभूति पूर्ण हो गयी है, बाहर ही नहीं आते हैं। वे तो स्वरूपमें समाये सो समाये बाहर आते ही नहीं।
मुमुक्षुः- सिद्ध ही हो गये।
समाधानः- हाँ, सिद्ध हो गये-पूर्ण हो गये। सम्यग्दृष्टि है उसे स्वानुभूति होती है, परन्तु बाहर आता है। बाहर आये तो भी उसे आत्मा तो हाजिर ही रहता है। परन्तु उपयोग बाहर जाता है। बाकी भिन्न रहता है। श्रीमदमें आता है न, "तेथी देह एक धारीने जाशुं स्वरूपदेश'। सम्यग्दृष्टि हो तो भी उसे देह धारण करना बाकी रहता है।
मुमुक्षुः- वेदान्तमें कहते हैं कि जीव थोडी देर गति धारण करनेसे पहले भ्रमण होता है।
समाधानः- नहीं, भ्रमण नहीं होता है, भ्रमण नहीं होता है। जीव बीचमें घुमता नहीं है।
मुमुक्षुः- उसके लिये जो ...
समाधानः- कहाँ सोये?
मुमुक्षुः- जीव स्वभाव तो जानना-देखना है।