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होते हैं, केवलज्ञानी तो पूर्ण हो गये हैं। उन्हें तो केवलज्ञान यानी पूर्ण वीतराग दशा (प्रगट हो गयी है)। उन्हें विकल्प भी नहीं होता। विकल्पका नाश हो गया है। वे तो केवल स्वरूपमें स्थिर हो गये हैं, केवलज्ञानी तो। वे तो ऐसे समा गये हैं कि बाहर ही नहीं आते हैं। ऐसी उनकी दशा होती है। केवलज्ञान, पूर्ण आत्माकी साधकदशाकी पराकाष्टा हो ऐसी उत्कृष्ट दशाको केवलज्ञानी प्राप्त हुए हैं। और आत्मामें जितनी पूर्ण शक्तियाँ है, वह उन्हें पूर्ण प्रगट हो गयी है।
ज्ञानस्वभाव आत्माका है, आत्मा ज्ञायक है। वह ज्ञानकी दशा पूर्ण, आनन्दकी दशा पूर्ण, सब उन्हें पूर्ण हो गया है। एक समयमें,... स्वयं तो स्वरूपमें विराजते हैं, परन्तु एक समयमें सहज ही सहजभावसे पूरा लोकालोक उनके ज्ञानमें ज्ञात होते हैं। ऐसी उनकी-केवलज्ञानीकी दशा होती है। एक समयमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, नर्क, स्वर्ग, प्रत्येक जीवोंके भाव, उनके द्रव्य-गुण-पर्याय सब एक समयमें प्रत्यक्ष जानते हैं। उन्हें कोई विचार नहीं करना पडता है। एकदम प्रत्यक्ष सहज जानते हैं। लेकिन स्वयं स्वरूपमें ही होते हैं, बाहर नहीं आते हैं, विकल्प नहीं आता है। उन्हें आहार नहीं होता। उन्हें पानी अथवा आहार कुछ नहीं होता। उनके शरीरमें रोग नहीं होता। वे तो शरीरसे भिन्न ही हो गये।
मुुमुक्षुः- अघाति कर्म तो उन्हें हैं। समाधानः- घाति कर्मका क्षय हो गया है। वह क्षय हो गया है। जो ज्ञानको रोके, आनन्दको रोके, दर्शनको रोके, चारित्रको रोके, वह सब कर्म क्षय हो गये हैं और अन्दर उतनी दशा पूर्ण हो गयी है। मात्र उन्हें आयुष्य है। इसलिये शरीर है। अमुक प्रकारकी शाता वेदनीय है। ऐसे चार कर्म हैं। लेकिन वह आत्माको अवरोधरूप नहीं होते हैं।
मुमुक्षुः- वेदनीय उन्हें होता है?
समाधानः- वेदनीय, अशाता वेदनीय उन्हें नहीं होती। शाता वेदनीय अल्प होती है।
मुमुक्षुः- जीवको मालूम पडता है कि अब जाना है, ऐसा आत्माको मालूम पडता है?
समाधानः- सब आत्माको मालूम नहीं पडता, किसीको मालूम पडता है कि अब आयुष्य पूरा हो रहा है। केवलज्ञानीकी तो बात ही अलग है, वे तो प्रत्यक्ष ज्ञानी हैं, उनकी तो बात अलग है। लेकिन सब आत्माको मालूम नहीं पडता कि अब आयुष्य पूरा हो रहा है। किसीको मालूम पडता है। किसीको मालूम पड जाता है कि अब आयुष्य पूरा होनेवाला है। सबको मालूम पडे ऐसा नहीं है।
और केवलज्ञानीकी गति तो मोक्षगति है। बस, वह तो मोक्षगति है। अब देह