Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१०९

समाधानः- मिथ्यात्व इसी प्रकारका है। मिथ्यात्व तो एक ही प्रकारका है। जूठी भ्रान्ति। जूठे देव-गुरु-शास्त्रको माने और अंतरमें शरीरके साथ एकत्वबुद्धि वह भी मिथ्यात्व है। विभावके साथ (एकत्वबुद्धि)। उसकी समझन भिन्न-भिन्न नहीं है। वह तो कोई अर्थ अलग करे, समझन अलग (होती है)।

मुमुक्षुः- संप्रदायमें ऐसा है कि ... आपको शिवको नहीं मानो तो वह मिथ्यात्व है।

समाधानः- वह स्वयंको विचारना चाहिये कि सत्य क्या है? सब संप्रदायवाले अलग-अलग कहे। सच्चे देव, सच्चे गुरु कौन है उसका स्वयंको विचार करना पडता है। जिसे आत्माकी जिज्ञासा हो वह स्वयं ही विचार कर लेता है कि सच्चे देव, सच्चे गुरु, सच्चे शास्त्र किसे कहते हैं। वह स्वयंको ही विचारना पडता है। सब संप्रदायवाले तो.. जहाँ स्वयं जन्म धारण करता है, जीव जहाँ जन्म धारण करता है वहाँ स्वयं अपना मान लेता है कि इस धर्ममें मैंने जन्म लिया है इसलिये यह मेरा सत्य है। और उस धर्ममें ऐसा आये कि कृष्णको मानो, शिवको मानो, इसको न मानो, वह तो मिथ्यात्व है। सब संप्रदायवाले ऐसा कहे तो स्वयंको विचार करके नक्की करना पडता है कि सत्य क्या है? वह तो नक्की करना पडता है।

मुमुक्षुः- आप्त पुरुषने कहा हुआ वचन मानना, तो आप्त पुरुष किसे मानना?

समाधानः- आप्त कौन है, वह स्वयंको नक्की करना पडता है। श्रीमदमें आता है न? कि जिज्ञासुके नेत्र सत्पुरुषको पहचान लेते हैं। उसका हृदय उस प्रकारका हो जाता है कि सत्य क्या है, ऐसी अंतरमेंसे उसे जिज्ञासा प्रगट होती है कि सत्य क्या है? सच्चे गुरु कौन है? वह स्वयं ही उनकी वाणी परसे, उनकी वाणीका कहाँ जोर आता है? उनका अमुक प्रकारके परिचयसे नक्की कर लेता है कि यही सच्चे देव हैं।

मुमुक्षुः- जिसे रुचि होगी वही आप्त पुरुषको पहचान सकेगा न? जो मिथ्यात्व है वह पहचान सकता है?

समाधानः- मिथ्यात्वी हो तो भी जो जिज्ञासु होता है, सतका जिज्ञासु हो, भले मिथ्यात्व है उसे, परन्तु जिसे सत्य समझनेकी रुचि है कि मुझे सत्य कहाँ प्राप्त होगा? सतको खोजनेवाला, भले उसे एकत्वबुद्धि है, परन्तु अन्दरसे उसे जिज्ञासा हुयी है कि मुझे सत्या कहाँ प्राप्त होगा? वह सत्यकी परीक्षा करनेवाला जो है वह पहचान सकता है। मिथ्यात्व हो तो भी सत्पुरुषको पहचान सकता है कि यह सत्पुरुष है। उसकी हृदयकी पात्रता ऐसी हो जाती है कि वह सत्पुरुषको पहचान लेता है। लेकिन उतनी पात्रता तैयार होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- .. कहा है कि बनारसीदासजी जहाँ भूल करते हैं वह हम समझ सकते