२५२ हैं। उन्होंने भूल बतायी नहीं है।
समाधानः- सम्यग्दर्शनमें उन्हें भूल नहीं हुयी है, पहले भूल हुयी है। पहले भूल हुयी है। पहले क्रियामें चढ गये, फिर शुष्क हो गये, अतः पहले भूल हुयी है, बादमें नहीं हुयी है। पहले-पहले सब भूल की है। पहले भूल हुयी है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- मूल तत्त्वमें उसकी भूल नहीं होती, वस्तुकी समझमें भूल नहीं होती। उसकी अस्थिरता हो, राग आवे तो अस्थिरता है। उसकी तत्त्वकी समझमें भूल नहीं होती।
मुमुक्षुः- उसमें तो भूल होती ही नहीं।
समाधानः- नहीं, समझमें भूल नहीं होती। उसे अस्थिरता होती है।
मुमुक्षुः- उस समय नासमझ हो सकती है?
समाधानः- नासमझ नहीं होती। उसे राग हो वह जानता है कि मुझे राग होता है, मेरे पुरुषार्थकी मन्दता है। अन्दर खेद होता है कि मैं गृहस्थाश्रममें हूँ, मुझे इस प्रकारका राग-द्वेष आदि होता है। लेकिन यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं उससे भिन्न हूँ।
मुमुक्षुः- तत्त्वमें भूल नहीं करते।
समाधानः- तत्त्वमें भूल नहीं होती। राग होता है। राग भी मर्यादा छोडकर राग नहीं होता है।
मुमुक्षुः- क्योंकि क्षण-क्षणमें रुचि तो बदलती रहती है। ... जो लक्ष्य हुआ है वह नहीं बदलता। दृष्टि नहीं बदलती।
समाधानः- दृष्टि नहीं बदलती। अन्दर ज्ञायकको पहचाना वह नहीं बदलता।
मुमुक्षुः- समकिती हो वह लडाईमें जाय और लडाई भी करता हो। उस वक्त उसे हिंसा भी करनी पडे।
समाधानः- लेकिन उसकी दृष्टि नहीं बदलती। उसे ऐसा होता है कि अरेरे..! मैं इसमें-राजमें बैठा हूँ इसलिये इस कार्यमेें जुडना पडता है। तो वह अनीतिसे कुछ नहीं करता है। मुझे राजका राग है, इसलिये मुझे हिंसामें जुडना पडता है। मुझे इस राजका राग छूट जाय तो...
मुमुक्षुः- हिंसामें जुडता है?
समाधानः- हाँ, सम्यग्दृष्टि ऐसे कार्यमें जुडता है। सम्यग्दृष्टि राजा होता है, सम्यग्दृष्टि राजा होता है। ऐसे कार्यमें जुडता है। लेकिन उसे खेद (होता है)।
मुमुक्षुः- मरे हुएको मारता हूँ, मानसे उसे ऐसा नहीं कहे। मेरा दोष है ऐसा