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कहे। मरे हुएको मारता हूँ...
समाधानः- मेरा दोष है, ऐसा मानता है। मेरी अस्थिरता है कि मैं छूट नहीं सकता हूँ। मुझे राजका राग है। यदि अभी यह राज छोड दूँ तो सब छूट जाय। मैं इसमें जुडता हूँ, यह मेरा स्वरूप नहीं है। मुझे जुडना पडता है।
मुमुक्षुः- ... कितनी ऐसी क्षण आती है कि जब ... तत्त्वसे दूर जाना पडता है।
समाधानः- तत्त्वसे दूर नहीं जाता है। उसे अस्थिरता है। तत्त्वसे दूर नहीं जाता। कोई उसे ऐसा कहे कि तेरा ज्ञायक आत्मा भिन्न नहीं है, शरीर और आत्मा एक है, ऐसा तू बोल, तो ऐसा वह नहीं कहते। आकाश-पाताल एक हा जाय भी नहीं कहे।
मुमुक्षुः- समकित होनेके बाद वह भूल जाता है?
समाधानः- नहीं, भूलता नहीं।
मुमुक्षुः- तो समयसारमें ही आता है।
समाधानः- पुरुषार्थकी मन्दता हो तो भूल जाय, वह तो भूल गया कहनेमें आता है। परन्तु सम्यग्दर्शनमें पुरुषार्थकी धारा होती है वह अप्रतिहत धारासे भूलता नहीं, भूलता नहीं। च्यूत हो जाय उसकी (बात अलग है)।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन स्थिर रहता है?
समाधानः- स्थिर रहता है, कोई च्यूत हो जाय उसकी बात नहीं है। वह तो च्यूत हो जाता है। कोई च्यूत हो जाय।
मुमुक्षुः- समयसारमें एक ऐसी गाथा है...
समाधानः- .. हाँ, वह है। ... धारासे उठा हुआ.. उसमें कोई च्यूत हो जाता है।
मुमुक्षुः- अधिष्ठान एक है, वह मुझे नहीं बैठता नहीं था। वेदान्तमें एक अधिष्ठान कहते हैं। छः द्रव्य पढा तो एक अधिष्ठान...? वह नहीं बैठा।
समाधानः- .. कोई होता ही नहीं, स्वयं ही है स्वतंत्र।
मुमुक्षुः- ... स्वतंत्र है। कोई..
समाधानः- स्वयं स्वयंका आधार है। कोई किसीका अधिष्ठान नहीं है। स्वयं स्वतंत्र है, जैसा करना हो।
मुमुक्षुः- इसीलीये जीवको स्वतंत्र बनाना है। अभी जो संयोगीभावमें है, उसे स्वतंत्र बनाना है।
समाधानः- विभावपर्यायमें स्वतंत्र है। जहाँ स्वयंकी परिणति करनी हो, वहाँ स्वतंत्र