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अनन्त जीव मोक्षमें गये हैं, अनन्त मुनि मोक्षमें गये हैं। यह मार्ग एक ही है, भेदज्ञान करके ज्ञायकको पहचानना। उसकी श्रद्धा-प्रतीति दृढ करके, वैसी परिणति करके उसमें लीन हो जाय वही एक मार्ग है, दूसरा कोई मार्ग नहीं है। विश्वास स्वयंको ही लाना है। प्रयत्न स्वयंको करना है। सबकुछ स्वयंको करना है। श्रद्धा प्रगट करनी, सम्यग्दर्शन करना, उसमें लीनता करनी वह सब स्वयंको ही करना है। स्वयं स्वतंत्र है। जल्द या देर, परन्तु स्वयं करे तो ही होता है। दूसरा कोई उसमें कर दे ऐसा नहीं है।
गुरुदेवने मार्ग बताया है, स्वयंको करना बाकी रहता है। एकदम आसान कर दिया है। चारों ओरसे मार्ग बताया है। द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप (समझाया है)। निमित्त- उपादान, अनेक-अनेक प्रकारका सूक्ष्म-सूक्ष्म रूपसे सब समझाया है। स्वयंको करना बाकी रह जाता है।