Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-११२

समाधानः- गृहस्थाश्रममें भी यह हो सकता है। उतनी स्वयंकी रुचि, जिज्ञासा और तैयारी हो तो गृहस्थाश्रममें भी होता है। पूर्वके सब जीव-भरत चक्रवर्ती आदि चक्रवर्ती गृहस्थाश्रममें रहकर भिन्न रहते थे। गृहस्थाश्रममें भी स्वयंकी उतनी भिन्न रहनेकी तैयारी हो तो हो सकता है। शुद्धात्माको पहचाना जाता है, शुद्धात्माका निश्चय, विश्वास किया जा सकता है। उसमें परिणति हो सकती है, सब कर सकते हैं, कोई किसीको रोक नहीं सकता। स्वयं अन्दरसे निर्लेप रहे तो गृहस्थाश्रममें सब हो सकता है। आत्माकी रुचि, आत्माका विचार, वांचन सब हो सके ऐसा है। आत्माका स्वभाव कैसे ग्रहण करना, वह सब हो सके ऐसा है। देव-गुरु-शास्त्र शुभभावमें, अंतरमें शुद्धात्मा। अंतरमें उसकी लगन, उसकी लगनके अतिरिक्त कुछ रुचे नहीं। गृहस्थाश्रममें सब हो सके ऐसा है।

मुमुक्षुः- माताजी! ... गृहस्थाश्रममें थोडी दुर्लभता लगती है। यहाँ तो सब सहज- सहज .. आपकी वाणीका योग, आपके दर्शनका योग...

समाधानः- सत्संग तो सबको सरल निमित्त है। सत्संगकी तो अलग बात है, परन्तु सत्संग नहीं हो तो स्वयं तैयार रहना। स्वयंको तैयारी रखनी चाहिये, वैसे संयोगमें। सत्संगमें तो आसान होता है, सरल होता है, परन्तु पुरुषार्थ तो स्वयंको ही करना है।

मुमुक्षुः- ... उसमें अनन्त गुण .. तो केवलज्ञानका अंश कैसे?

समाधानः- सर्व गुणांश सो सम्यग्दर्शन है। केवलज्ञानका अंश है। मति-श्रुत केवलज्ञानका अंश है। मतिज्ञान है न? जो ज्ञायक स्वरूप आत्मा है, ज्ञानस्वरूप आत्मा है उसका जो सम्यकज्ञान अंश प्रगट हुआ है। ज्ञानका अंश प्रगट हुआ इसलिये उसमें केवलज्ञान आ गया। प्रगट केवलज्ञान नहीं है, उसका अंश प्रगट हुआ है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- हाँ। केवलज्ञान है उसका भेद निकाल देना। ज्ञानका सम्यक अंश प्रगट हुआ, (वह) केवलज्ञानका अंश है। मति-श्रुत केवलज्ञानको बुलाता है। आता है न? केवलज्ञान शक्तिरूप है, परन्तु सम्यकरूप परिणमा है। केवलज्ञान, ऐसा उसका भेद निकाल दो (तो) ज्ञानका अंश है वह केवलका ही अंश है। सम्यक अंश जो प्रगट हुआ वह केवलका अंश है। शक्ति अपेक्षासे केवलज्ञान है, अनेक प्रकारके श्रीमदमें शब्द आते हैं न? इच्छा अपेक्षासे, मुख्यनयके हेतुसे केवलज्ञान है।

मुमुक्षुः- ज्ञानमें स्वभावका अंश रहा है?

समाधानः- स्वभावका अंश जो प्रगटरूप हुआ, जो परिणति अपनी ओर (गयी कि) ज्ञायकस्वरूप-ज्ञानस्वरूप आत्मा है, उसमें सम्यकरूप परिणति स्वानुभूतिका अंश अंतरमें प्रगट हुआ। जो स्वयंको जाननेवाला अंश प्रगट हुआ वह केवलका ही अंश है। मुख्य नय, जो सम्यक नय प्रगट हुयी, सम्यक अंश प्रगट हुआ वह केवलज्ञानका