२८२ कि उनकी सज्जनता छोडकर उनके उदयकाल नहीं होते हैं। उनके उदयकाल अमुक मर्यादित होते हैं। जिसे आत्माकी लगी, जिसे अन्दरसे स्वानुभूति और ज्ञायक दशा प्रगट हुयी, भेदज्ञान (हुआ), उनके उदयकाल ऐसे होते हैं कि गृहस्थाश्रममें हो तो उनकी सज्जनता छोडकर ऐसे उदयकाल नहीं होते। और उसमें पुरुषार्थ काम नहीं करता है अर्थात वह विशेष आगे नहीं जा सकते। परन्तु उसका पुरुषार्थ वे स्वयं करते हैं, उसके ज्ञाता रहते हैं। परन्तु उन्हें खेद रहता है कि मैं आगे नहीं बढ सकता हूँ। बाकी उनकी सब परिणति मर्यादाके बाहर नहीं होती।
जो लौकिकमें शोभा न दे ऐसा उनका वर्तन नहीं होता। ऐसा नहीं होता। उनका वर्तन एकदम वैरागी वर्तन (होता है)। उन्हें खेद होता है कि इस उदयमें मैं खडा हूँ। लेकिन इसी क्षण छूटा जाता हो तो मुझे यह कुछ नहीं चाहिये। चक्रवर्ती गृहस्थाश्रममें रहते थे, परन्तु उन्हें अन्दरसे खेद, वैराग्य होता था कि मैं छूट नहीं सकता हूँ। यह उदयकाल (ऐसा है)। बाकी उसमें पुरुषार्थ काम नहीं करता है ऐसा नहीं। उनकी दशा ऐसी होती है कि वे हठ करके आगे नहीं जाते हैं। उनका सहज पुरुषार्थ चले, उस पुरुषार्थसे ही आगे बढा जाता है। परन्तु वह पुरुषार्थ चलता नहीं है, इसलिये ऐसा कहते हैं कि यह परद्रव्य है, मेरा स्वरूप नहीं है। बाकी उनकी अन्दरसे एकदम वैराग्य दशा और विरक्ति होती है। उनके उदयकाल लौकिकमें शोभा न दे ऐसे उदयकाल उनके नहीं होते। ऐसा नहीं होता है। उन्हें भीतरमें...
श्रीमद राजचंद्र, उनका गृहस्थाश्रमका वर्तन मर्यादित होता है। उन्हें अन्दरसे कितनी उदासीनता और बातमें आत्माकी पुकार करते हैं। अन्दर ज्ञायक.. ज्ञायक.. करते हैं। ऐसा उनका वर्तन होता है। उनका स्वच्छन्द जैसा वर्तन नहीं होता है। आप किसीकी भी बात करते हो, वस्तुस्थिति यह है।
सज्जनको गृहस्थाश्रममें शोभा न दे ऐसे उनके कार्य नहीं होते हैं। उनका जीवन एकदम अलग, उनका हृदय अलग होता है। अंतरसे उन्हें मैं आत्मा भिन्न और यह सब मेरा स्वरूप नहीं है। यह मैं कहाँ खडा हूँ? इसी क्षण यदि छूट जाता हो और स्वरूपमें लीनता होती हो तो मुझे यह कुछ नहीं चाहिये। ऐसा उनका हृदय होता है। आगे नहीं बढ सके अथवा स्वरूपमें विशेष लीनता न हो तो उसे ज्ञायक रहता है। अन्दरसे भिन्न और न्यारे रहते हैं। लौकिकमें शोभा न दे ऐसे उदयकाल उन्हें नहीं होते हैं। पुरुषार्थ काम नहीं करता है ऐसा नहीं है, परन्तु उनकी सहज दशासे पुरुषार्थ विशेष आगे नहीं बढता हो, परन्तु ऐसे उदयकाल, लौकिकमें शोभा न दे ऐसे उदयकाल उनके नहीं होते।
मुमुक्षुः- निश्चयनयका आलम्बन लेकर स्वच्छन्दका पोषण कर रहे हैं ऐसा कहा