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कैसे हो सकता है?
मुनिओं, चाहे जैसे उपसर्गमें शान्ति रखकर आत्माका ध्यान करके आत्मामें आगे बढकर केवलज्ञानकी प्राप्ति करते हैं। वह प्रतिकूलता आत्माका स्वरूप नहीं है। आत्मा उससे भिन्न है, ऐसा विचार करना।
मुमुक्षुः- भक्ति करते वक्त आत्माका काम साथमें कैसे हो?
समाधानः- देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति करते वक्त आत्माका काम साथमें होता है। जो जिनेन्द्र देवने किया है, जो आत्माका स्वरूप महिमावंत है उसे भगवानने प्राप्त किया है। गुरु उसकी साधना करते हैं। और शास्त्रमें उसका स्वरूप आता है। उसकी महिमा आये कि करने जैसा तो यही है। जो भगवानने प्रगट किया है, जो गुरु साधना करते हैं, इसलिये वही आदरने योग्य है। जिसे गुरुकी महिमा आये उसे आत्माकी महिमा आये बिना नहीं रहती।
जैसा गुरु करते हैं, वैसा मुझे कैसे प्राप्त हो? ऐसी रुचि हुए बिना नहीं रहती। साथमें आत्माका होता है। गुरु क्या कह गये हैं? गुरु ऐसा कहते हैं कि तू तेरे आत्माको पहचान। तू भगवान जैसा है। गुरुकी आज्ञाका पालन किया कब कहा जाय? कि गुरु जो कहे उसका अन्दर विचार करे तो। अनादि कालसे अनन्त कालका यह परिभ्रमण करते हुए यह मनुष्य देह मिलता है। उसमें ऐसे गुरु पंचमकालमें मिले, (जिन्होंने) मार्ग बताया। देशनालब्धि अनन्त कालसे... ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। अनन्त कालमें जीव प्रथम बार सम्यग्दर्शन प्राप्त करे तो कोई जिनेन्द्र देव अथवा गुरु साक्षात मिलते हैं, तब उसे अन्दर देशना प्राप्त होती है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। करता है स्वयंसे, उपादान स्वयंका है। उसके साथ आत्माका हो सकता है। उनकी भक्ति आने पर विचार करे कि मैं भी उनके जैसा हूँ। जैसे भगवान हैं, वैसा मैं हूँ। भगवान ऐसा कहते हैं कि तू मेरे जैसा है। तू अन्दर देख। भगवानके उपदेशमें भी ऐसा आता है।
गुरुदेव भी ऐसा ही कहते थे कि तू भगवान जैसा है। तू पहचान। तू शरीरसे भिन्न जाननेवाला ज्ञायक है। ऐसे गुरुका उपदेश क्या है, गुरुका उपदेश ग्रहण करे तो अंतरमें स्वयं अपने आत्माको पहचान सकता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। भक्ति करे तो नहीं हो ऐसा नहीं है। देव-गुरुकी महिमा उसका साधन बनता है। वह निमित्त और उपादान अपना है। वह तो महा प्रबल साधन है। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, सच्चे देव-गुरुकी महिमा प्रबल निमित्त है। आत्माको प्राप्त करनेका महा साधन है। उपादान स्वयं करे तो होता है।
समाधानः- .. ऐसा है, ज्ञानियोंकी जो निश्चय दृष्टि हुयी है, उन्हें जो उदयकाल होता है, वह उदयकाल उन्हें मर्यादामें होता है। उनके उदयकाल ऐसे नहीं होते हैं