३०२ प्रभुके घर द्वारे, रटन करुँ... रटन करते-करते समीप न आ जाय, ऐसा कैसे बने?
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- सब अपने सर ले-ले। कुछ भी हो, अपने पर... कोई भूल हो तो कहे, मेरी भूल है। सबकी भूल अपने सर ले-ले। और पहलेसे ... यहाँ गुरुदेवका इतना किया।
मुमुक्षुः- गुरुदेव कुछ भी कहे, बात खत्म। कोई विकल्प नहीं। उनकी विकल्प तोडनेकी बहुत शक्ति थी।
समाधानः- पण्डितोंके मुँह बन्द कर दे। उन्हें भाई मतलब उनके सर पर, अतः गुरुदेवको कोई बोझ नहीं था।
मुमुक्षुः- वैसे तो सब जानते हैं, परन्तु आखरी दिनका भाव है...
समाधानः- एक आधाररूप गुरुदेव.. शास्त्र पढ ले, आत्मधर्म पढ ले। कितने शास्त्र पढ ले। पूजामें, भक्तिमें, स्वाध्यायमें सबमें नियमितता। हर जगह आये। अर्पणतासे सब सेवा की।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।
चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।