Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- करना स्वयंको पडता है। वह तो बाहरकी वस्तु है। यह तो अंतरमेंसे स्वयंको प्रगट करना है। अपने पास ही है, कहीं लेने नहीं जाना है। लेकिन स्वयं जागता नहीं है। आँख खोलकर देखता नहीं। निद्रामें सोया है। आँख खोलकर देखे तो दिखे न? आँख बन्द करके (बैठा है), देखता नहीं।

मुमुक्षुः- मतलब आँख बन्द रखकर दिखाईये-दिखाईये ऐसे माँगता रहता है।

समाधानः- हाँ, आँख बन्द रखी है, देखता नहीं है। अन्दर ज्ञानचक्षु खोले तो दिखे न? महिमा नहीं है, उतनी जरूरत नहीं लगी है।

समाधानः- ... बाहर टहेल लगाये, अन्दर ज्ञायकका द्वार पर टहेल लगाये। ज्ञायकके द्वार .. आनन्दघन प्रभुके घर द्वार, रटन करुँ गुणधामा। प्रभुके द्वार पर, हे ज्ञायक! हे गुणसागर ज्ञायकदेव! हे गुणका सागर! तू अनन्त गुणकी महिमासे भरा, तीन लोकका नाथ। तू सबको जाननेवाला आनन्दका सागर (है)। तेरे द्वार पर मैं टहेल लगाता हूँ। तेरे द्वार क्यों नहीं खोलता? तो द्वार खालना ही पडे। हे ज्ञायकदेव! जिनेन्द्र देव मेरे समीप आये, गुरु मेरे समीप आये, शास्त्र मेरे समीप आये। सब मेरे समीप हैं, एक तू मेरे समीप न आये, ऐसा कैसे बन सकता है? बने ही नहीं।

ज्ञायकदेव तेरी साधना की ऐसे जिनेन्द्र देव, तेरी साधना की ऐसे गुरुदेव और तेरे श्रुतका चिंतवन करे, वह सब मेरे समीप आ गये। गुरु श्रुत श्रवण करवाते हैं, वह सब मेरे समीप आये। जिसकी आराधना जिनेन्द्र देव, गुरु कर रहे हैं, वह मेरे समीप आये और तू स्वयं मेरे साक्षात समीप क्यों नहीं आता? तू स्वयं ही है। तेरे समीप आये बिना रहे ही नहीं। आयेगा ही।

... अन्दर प्रगट हुए बिना रहेगा ही नहीं। उसे काल लागू नहीं पडता। कालको निकाल देना। चाहे जब भी हो, कालको निकाल देना। ज्ञायकदेव कभी भी..

मुमुक्षुः- अपना ही है।

समाधानः- अपना ही है, कहीं ढूँढने नहीं जाना पडता। जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र अमुक पुण्य हो तो मिलते हैं। वह पुण्य मिल जाता है, और स्वयं समीप है वह नहीं मिले, यह कैसे बने? ऐसा पुण्य बन्धते हैं और जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र मिल जाते हैं, तो ज्ञायकदेव स्वयं ही है और वह न मिले? स्वयंको खोजने स्वयं जाता नहीं है और मिलता नहीं है। स्वयं प्राप्त न हो ऐसा होता है?

जैसे गुरुके सामने, देवके सामने टकटकी लगाता है, वैसे यहाँ स्वयंकी ओर टकटकी लगाकर देखना। ... टकटकी लगाकर देखना। ... उसे देखता ही रहे, तू ज्ञायकदेव ऐसा! तू ज्ञायकदेव ऐसा!! जैसे जिनेन्द्र देवकी मुद्राके सामने, गुरुकी मुद्राके सामने टकटकी लगाता है, वैसे ज्ञायक सन्मुख टकटकी लगाये तो वह समीप आ जाय। .. आनन्दघन