अमृत वाणी (भाग-३)
३२० हैं। परन्तु बीचमें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, तत्त्वका चिंतवन जिज्ञासाकी भूमिकामें होते हैं। ज्ञायकके ध्येयसे होता है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! कहानगुरुनुं हार्द समजावनार भगवती
मातनो जय हो! जन्म जयंति मंगल महोत्सवनो जय हो!