Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३२२ वस्तु अनादिअनन्त है।

जाननेवालेको जानना है। अंतरमें भेदज्ञान करके जाने तो ज्ञात हो ऐसा है। विभाव नहीं, जो कलुषित भाव है वह नहीं, मात्र जाननेवाला। जाननेवाला स्वयं त्रिकाल जाननस्वरूप है। किसीसे उत्पन्न नहीं हुआ है, कभी जाननेवालेका नाश नहीं हो सकता। इसलिये वह वर्तमान त्रिकालको बता रहा है कि मैं त्रिकाल ही हूँ। मैं एक वस्तु हूँ।

जानना.. जानना.. जानना उसमें जानना ही आता है, उसमें नहीं जाननेका आता ही नहीं। इसलिये वर्तमान है वह त्रिकालको बता रहा है कि त्रिकाल सत, जाननेवाला सत त्रिकाल हूँ। त्रिकाल स्वरूपको बताता है। जो है वह है, वह त्रिकाल है रूप है। जो सत है वह त्रिकाल सतरूप है।

मुमुक्षुः- ... वह ऐसा सूचित करता है कि अन्दरमें त्रिकाली जानने-देखनेवाला पूरा पदार्थ...

समाधानः- कोई तत्त्व-पदार्थ है। वर्तमान जाननेवाला है वह त्रिकाल सत... जाननेवाला स्वतःसिद्ध त्रिकाल सत एक द्रव्य है। उस द्रव्यमेंसे द्रव्यका जानना है। वह जाननेवाला स्वयं त्रिकाल सतको बता रहा है। वर्तमान पर्याय भले हो, लेकिन वह त्रिकालको बता रही है। वह जाननेवाला किसीसे उत्पन्न नहीं होता है। वह जाननेवाला स्वतःसिद्ध अनादिअनन्त त्रिकाल सत है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- त्रिकालको ग्रहण करके, त्रिकास सतको ग्रहण करके कि मैं यह वस्तु ही हूँ, यह विभाव नहीं है। उसे विभावका दुःख लगा हो, विभावकी आकुलता लगी हो। आकुलस्वरूप यह मेरा स्वरूप नहीं है। मैं तो जाननेवाला हूँ। जाननेवाला एक द्रव्य हूँ। ऐसे उसे ग्रहण करके, उसकी प्रतीत करके उस ओर उपयोगको झुकाये और उसमें लीनता करनेका प्रयत्न करे। भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करे। जो वस्तु यथार्थ है, द्रव्य है, उस द्रव्यको ग्रहण करनेका प्रयोजन ऐसा है कि जिसे आत्माकी लगी हो, विभावका दुःख लगा हो, भवभ्रमणकी थकान लगी हो, वह स्वयं वापस मुडकर, मैं तो अनादिअनन्त एक शाश्वत वस्तु हूँ, यह विभावमें जो भटकना होता है, परिभ्रमण, आकुलताकी जालमें फँसता रहूँ इन विकल्पोंमें, यह मेरा स्वरूप नहीं है।

मेरा स्वरूप तो अनादिअनन्त मैं तो शाश्वत द्रव्य हूँ। उसे ग्रहण करके, जो स्वरूप है, ज्ञायक ज्ञयकरूप उसकी परिणति कैसे प्रगट हो, उसका प्रयास करना। बारंबार प्रयास करे कि यह ज्ञायक ज्ञायकरूप मुझे कैसे भास्यमान हो? ज्ञायक ज्ञायकरूप मुझे कैसे वेदनमें आये? यह जो मेरा सत है, वह मुझे कैसे वेदनमें आये? विभावका वेदन हो रहा है, उसके बदले ज्ञायकका वेदन कैसे आये? ऐसे उसे जिज्ञासा हो, उसे ग्रहण