Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३४८

मुमुक्षुः- ज्यादासे ज्यादा कितनी शीघ्रतासे निर्विकल्प दशा हो सकती है?

समाधानः- उसके पुरुषार्थकी योग्यता हो उस अनुसार होती है। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें क्षण-क्षणमें होती है, वैसा उसे नहीं होता। चौथेसे पाँचवेमें विशेष होती है। चौथेके योग्य हो उतना उसे होता है। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें होती है, ऐसा उसे चतुर्थ गुणस्थानमें उतनी शीघ्रतासे नहीं होती। बाकी जैसी उसकी पुरुषार्थकी गति हो, उस अनुसार होता है। उसका नियमित काल नहीं होता है।

मुमुक्षुः- कोई जीव तीव्र पुरुषार्थी हो तो?

समाधानः- तो उसकी परिणति अन्दर उग्रतासे, ज्ञायककी उग्र परिणति हो तो उसे विशेष होती है। किसीको अमुक होती है, किसीको अमुक होती है, परन्तु उसकी भूमिकाका उल्लंघन करके नहीं होती, भूमिका अनुसार होती है।

मुमुक्षुः- एक दिनमें पचास-साँठ बार निर्विकल्प दशा हो, ऐसा होता है?

समाधानः- पचास-साँठ बार हो ऐसी दशा चतुर्थ गुणस्थानमें नहीं होती।

मुमुक्षुः- तीन-चार बार होती हो, ऐसा है?

समाधानः- ऐसा कोई नियम नहीं है। ... ऐसा नहीं होता। स्वानुभूति करनेवालेको स्वानुभूतिकी गिनती पर लक्ष्य नहीं है। उसे स्वभावकी शुद्धि वृद्धिगत करने पर (लक्ष्य) होता है। उसमें उसकी स्वानुभूतिकी दशा वर्धमान होती जाती है। उसके स्वभावकी निर्मलता, चारित्रकी परिणति विशेष-विशेष निर्मल होती जाती है। उस पर उसकी परिणति होती है, उसमें उसे स्वानुभूतिकी दशा वर्धमान होती जाती है। ऐसा करते-करते उसका उग्र काल होता है तो मुनिदशा आती है।

मुमुक्षुः- .. तो ज्ञानीको कैसे मालूम पडे कि यह पाँचवा आया?

समाधानः- उसकी परिणति निर्मलताके समय जो है, उसकी स्वानुभूतिकी दशा बढती जाती है, अंतरमें परिणतिकी निर्मलता बढती जाती है। विरक्ति बढती जाती है। गृहस्थाश्रमके योग्य जो परिणाम होते हैं, उससे विरक्तिके परिणाम विशेष वर्धमान होते जाते हैं। इसलिये वह पकड सकता है।

मुमुक्षुः- निर्विकल्प दशा ..

समाधानः- निर्विकल्प दशा बढती जाती है। सविकल्प दशामें विरक्ति बढती जाती है। निर्विकल्प दशा भी बढती है और सविकल्पतामें विरक्ति ज्यादा होती है।

मुमुक्षुः- चौथेमें भी उस प्रकारसे फर्क पडता है? समाधानः- चौथेकी भूमिका एक होती है, परन्तु उसकी परिणतिकी तारतम्यतामें फर्क होता है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!