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है। उसे भेदज्ञान हो तो शान्ति प्रगट हो, बाकी शान्तिका लक्षण पहले (ग्रहण नहीं होता है), पहले ज्ञानका लक्षण असाधारण है। अनन्त गुण है, परन्तु असाधारण विशेष लक्षण हो तो ज्ञान ही है। ज्ञान कहो, चेतना कहो, जो भी कहो, उपयोग कहो। सब एक ही है। उपयोग यानी पूरा ले लेना, पूरा ज्ञान आत्मा। कोई जगह उपयोगको पर्याय कहा हो, उपयोग पूरा भी लेते हैं, उपयोगमें उपयोग यानी पूरा ले लेना। लेकिन वह एक ही है। ज्ञानमें सब आ जाता है।
मुमुक्षुः- .. उसका लक्षण शान्ति और आनन्द बने कि उसका लक्षण भी ज्ञान ही रहे?
समाधानः- उसे कहाँ फिर लक्षणसे ग्रहण करनेका है? उसे तो ग्रहण हो गया है, उसे ग्रहण नहीं करनेका है। उसे ज्ञायक ग्रहण हो गया है। ज्ञायक उसे हाजराहजूर सब लक्षण ही है। ज्ञायक है, शान्ति, आनन्द सब है। उसे ग्रहण करनेका नहीं है, उसे ग्रहण हो गया है। पूरा ज्ञायक ग्रहण करता है, उसमें उसे शान्ति, ज्ञायकता सब आ जाता है। वेदकता, चैतन्यता ये सब जीव विलास। सब उसमें आ जाता है। समता, रमता, ऊर्ध्वता, ज्ञायकता, सुखभास। वेदकता, चैतन्यता ये सब जीव विलास। समता, रमता। रम्य स्वभाव है, ऊर्ध्वता, ज्ञायकता, सुखभास सब ज्ञायकमें आ जाता है। वेदकता, चैतन्यता वह सब जीवके लक्षण है। वह जिसे ग्रहण हुआ उसमें सब आ जाता है।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको परिणति व्यापाररूप होती है ऐसा आप फरमाते हो। परन्तु उसका अर्थ समझमें नहीं आता है।
समाधानः- व्यापाररूप अर्थात ज्ञायकता और भेदविज्ञानकी परिणति सविकल्प दशामें ज्ञानीको जो स्वानुभूति हुयी, उसके बाद जो सविकल्प दशा होती है, उसमें ज्ञायककी धारा उसे वर्तती है। जितने अंशमें उसे ज्ञायकता प्रगट हुयी है, पूरी दृष्टिने तो द्रव्यको ग्रहण किया। उसमें ज्ञान उस ओर झुका है और आंशिक परिणति झुकी है। इसलिये उसकी ज्ञायकताकी धारा वर्तती ही रहती है। उसे विशेष-विशेष पुरुषार्थकी धारा, भेदज्ञानकी धारा वर्तती रहती है। उसका पुरुषार्थका व्यापार चलता रहता है।
क्षण-क्षणमेें उसे भेदज्ञानकी धारा वर्तती ही रहती है। चाहे जैसे शुभ विकल्प हो तो भी उसे भेदज्ञानकी धारा, ज्ञाताकी धारा वर्तती ही रहती है। वह वर्तती है, उसे कभी स्वानुभूति होती है, कभी वह सविकल्पतामें हो, लेकिन भेदज्ञानकी धारा उसे क्षण-क्षणमें चलती है। चाहे जो भी कार्यमें हो, विकल्पमें हो, भेदज्ञानकी धारा ज्ञायककी धारा, उसे आंशिक शांतिका वेदन, ज्ञायकता वह सब उसे छूटता नहीं है। सबसे उर्ध्व भिन्न रहता है। वह उसे छूटता नहीं। जागते, सोते, स्वप्नमें भी उसे ज्ञायकताकी धारा ऐसे ही चलती रहती है।