३४६ जिनेन्द्र देव हैं। देव उनकी पूजा करते हैं कि यह भगवान आदरणीय हैं। अकृत्रिम है परन्तु कुदरत परिणमित हुयी है। अकृत्रिम शाश्वत प्रतिमाएँ, उस रूप कुदरत परिणमित हो गयी है। अतः श्रावक भी उस तरह प्रतिमाओंकी स्थापना करते हैं। चतुर्थ कालमें भी प्रतिमाओंकी स्थापना होती है और पंचमकालमें (भी करते हैं), वह मार्ग ही है।
बडे राजा, चक्रवर्ती भी प्रतिमाओंकी स्थापना करते हैं। मन्दिर बनवाते हैं, प्रतिमाओंकी स्थापना करते हैं। अंतरमें ज्ञायकदेव समझमें नहीं आया है, पूर्णता प्राप्त नहीं हुयी है तबतक बाहरमें शुभभावमें जिनेन्द्र देव, गुरु एवं शास्त्रके शुभभाव आये बिना नहीं रहते। ... मुनि हों, वे भगवानके दर्शन तो करते ही हैं। पूजा तो श्रावक करते हैं और मुनि दर्शन तो करते ही हैं।
मुमुक्षुः- .. और ज्ञानका उघाड भी है, परन्तु राग जितना स्पष्ट ज्ञेय होता है, उस तरह उघाड ज्ञेय नहीं होता है।
समाधानः- राग दिखता है। राग अनादिका.. (वस्तुको) देखता नहीं है और स्वयं रागको देखता है। रागमें एकत्वबुद्धि है इसलिये। .. तो स्वयं ही है। अपनी ओर दृष्टि करे तो ज्ञान भी दिखाई दे। परन्तु दृष्टि अपनी ओर नहीं है और राग ओर दृष्टि है। रागका वेदन है। ज्ञानकी ओर दृष्टि नहीं करता है, ज्ञानका वेदन नहीं करता है। दिखाई नहीं देता है। अनादिका अभ्यास रागकी ओरका है इसलिये।
.. जाननेवाला कौन है? स्वयं ही है। राग है उसे जाना किसने? स्वयंने। स्वयं स्वयंको नहीं देखता है। अनादिकी ऐसी भ्रम बुद्धि हो गयी है।
मुमुक्षुः- पहले तो जिस ज्ञानका ग्रहण होता है वह तो पर्याय है न?
समाधानः- ज्ञानका ग्रहण होता है वह पर्याय है, लेकिन वह ग्रहण किसे करती है? ज्ञान स्वयं स्वयंको ग्रहण करता है, शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करती है। ग्रहण करनेवाली भले पर्याय है, परन्तु शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करती है। वह पर्यायको देखता नहीं है, वह देखता है शाश्वत द्रव्यको देखता है। पर्याय तो बीचमें आती है। पर्याय तो ग्रहण करती है, परन्तु ग्रहण करना किसे है? कि शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करना है।
.. पर्याय इस ओर आये, परन्तु स्वकी ओर पर्याय जाती है, लेकिन ग्रहण अखण्ड एवं शाश्वतको ग्रहण करनेका है। अंश भी अंशीको ग्रहण करता है, पूर्णको। तो ही यथार्थतासे ग्रहण किया है। एक अंश ग्रहण होता हो तो ग्रहण नहीं किया है। अंशी ग्रहण हो तो ही उसने यथार्थ ग्रहण किया है।
मुमुक्षुः- .. जिसके द्वारा ग्रहण होता है।
समाधानः- ज्ञान ही असाधारण लक्षण है। मुख्य लक्षण ज्ञान ही है। ... तो बादमें प्रगट होता है, पहले तो उसे ज्ञानसे ग्रहण होता है। ज्ञान ही असाधारण लक्षण