Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१२४

वह प्रगट नहीं तो तबतक उसकी आराधना करनी, उसका अभ्यास करने जैसा है। उसके साथ यह सब धर्म आते हैं। क्षमा, आर्जव, मार्दव वह सब आराधना करने जैसी है। रत्नत्रयकी आराधना।

.. आराधना करनेसे उसमें ज्ञायककी आराधना करनेसे ... आत्मा चैतन्यदेवकी प्राप्ति होती है। बाकी देव-गुरु-शास्त्रकी विराधना करनेसे उसका फल अच्छा नहीं आता। आराधना करनेसे फल अच्छा आता है। .. आराधनामें आत्माकी आराधना समा जाती है। आत्माकी आराधनापूर्वक वह सब होता है। वह करनेसे उसमें आत्मा ऊपर आता है और उसकी यदि विराधना की तो दूर हो जाता है। वैसे आत्मासे भी दूर जाता है, ऐसा उसका आशय है। विराधना करनेसे उसका फल अच्छा नहीं आता है और आराधना करनेसे फल अच्छा आता है।

पुण्यकी इच्छा करने जैसा नहीं है। अन्दर आत्मा-शुद्धात्माका फल आये, शुद्धात्माकी परिणति प्राप्त हो वह करने जैसा है। देव-गुरु-शास्त्रकी आराधनामें वह समाया है। उसमें शुभ तो बीचमें होता ही है। जहाँ अनाज पकता है, वहाँ डंठल साथमें होता ही है। डंठल पर दृष्टि नहीं है, दाने पर दृष्टि है। शुद्धात्माका फल आवे उसमें पुण्यका डंठल तो साथमें होता ही है। पुण्य तो साथमें होता ही है।

.. तो समीप आवे ही। जिसकी शुद्धात्मा पर दृष्टि हो। .. गुरुदेव कहते हैं न? ... शुद्धात्मा पर दृष्टि... जिनेन्द्र महिमा कोई अलग वस्तु है, उसमें आत्माकी महिमा समाविष्ट है। जगतमें सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकरदेव हैं। उनकी महिमा यानी अंतरंगसे आयी हुयी महिमा, उसमें चैतन्यदेवकी महिमा समाविष्ट है। सच्चा, यथार्थ हो तो। यथार्थ भेदपूर्वक हो तो। .. आत्माकी आराधना करने जैसा है।

.. पहले तो कहाँ मन्दिर जाना आदि कुछ था नहीं। शास्त्रमें आता है न? जिन प्रतिमा जिन सारखी। गुरुदेवने सब बताया है। साक्षात जिनेन्द्र देव तो अभी इस भरतक्षेत्रमें नहीं है। तो उनकी प्रतिमाजीकी स्थापना करके पूजा करनेका आता है। साक्षात भगवान विराजते हों, उनकी तो इन्द्रों पूजा करते हैं। प्रतिमाओंकी भी चतुर्थ कालमें पूजा करते हैं, तो वह मार्ग ही है। प्रतिमाओंका स्थापन करते हैं, पूजा करते हैं, शाश्वत प्रतिमाएँ जगतमें हैं। जगतमें सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकरदेव हैं तो जगतके परमाणु भी शाश्वत रत्नकी प्रतिमारूप परिणमित हो गये हैं। जगतके पुदगल भी। रत्नकी शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। ऊर्ध्वलोक, मध्यलोकमें शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। मेरुमें, नंदीश्वरमें रत्नकी पाँचसौ-पाँचसौ धनुषकी, जैसे भगवान समवसरणमें विराजते हैं, वैसी प्रतिमाएँ हैं, एकमात्र ध्वनि-दिव्यध्वनि नहीं है।

जगतमें सर्वोत्कृष्ट भगवान तीर्थंकरदेव हैं। वे सर्वोत्कृष्ट हैं तो जगतके परमाणु भी रत्नमय प्रतिमारूप शाश्वत परिणमित हो गये हैं। यह बताता है कि जगतमें सर्वोत्कृष्ट