मुमुक्षुः- इसके पहले आपने कहा था, जब पूछा था कि पर दिखता है परन्तु स्वयं नहीं दिखाई नहीं देता, तब आपने कहा था कि वह स्वयं ही है। अर्थात जो देखना होता है, वह स्वयं ही होनेके बावजूद मानों अन्य दिखाई देता है, ऐसा उसे अभ्यास रहा करता है, इसलिये स्वयं स्वयंको देखता नहीं, ऐसी परिस्थिति वहाँ उत्पन्न हो जाती है। वहाँ उसे अवलोकन कालमें उसकी जागृति होनी चाहिये कि यह देखनेवाला मैं हूँ, इस तरह स्वयंको अपनेआप भासित होना चाहिये। तो उसमें उसका सत्त्व कैसा है? उसकी हयाती कैसी है? उसकी सातत्यता कैसी है? वह सब उसे ख्यालमें आने लगे। तो उस परसे स्वयंका अस्तित्व ग्रहण हो।
समाधानः- मैं देखनेवालेको ही देखता हूँ, शास्त्रमें आता है ना? देखनेवाला ही मैं हूँ, देखनेवाले द्वारा ही देखता हूँ। मैं स्वयं देखनेवाला ही हूँ, मैं स्वयं जाननेवाला ही हूँ। अन्यको देखनेवाला हूँ, ऐसे नहीं, मैं स्वयं देखनेवाला हूँ। मैं दर्शन स्वभावसे भरपूर हूँ, मैं ज्ञानस्वभावसे भरपूर हूँ। उष्णता, दूसरेको उष्ण करती है इसलिये अग्नि उष्ण है, ऐसा नहीं, स्वयं उष्णतासे भरी हुयी अग्नि ही है। बर्फ दूसरेको ठण्डा करे इसलिये बर्फ ठण्डा है ऐसा नहीं, स्वयं बर्फका स्वभाव ठण्डा है। ऐसे मैं स्वयं दूसरेको देखूँ और जानूँ इसलिये मैं जाननेवाला हूँ, ऐसा नहीं, परन्तु मैं स्वयं जाननेवाला ही हूँ। मैं जाननेवाला अनन्त शक्तिसे भरपूर जाननेवाला हूँ। उसमें कोई अंश ऐसा नहीं है कि जो नहीं जानता। स्वयं ज्ञायक शक्तिसे भरा हुआ, स्वयं देखनेकी शक्तिसे भरा हुआ, स्वयं वस्तु स्वतःसिद्ध अनादिअनन्त वस्तु हूँ। जिसे किसीने बनायी नहीं है, वह स्वयं है।
जैसे यह परपदार्थ जड आदि स्वयं पदार्थ है, वैसे मैं एक चैतन्य स्वयं जाननेवाला स्वयंसिद्ध वस्तु जाननतत्त्व, जाननगुणसे, जाननस्वभावसे भरा हूँ। जाननेवालेमें शान्ति, जाननेवालेमें आनन्द, जाननेवालेमें अनन्त गुण भरे हैं। एक उष्णता देखो तो जड पदार्थ (है), उसमें दूसरे अनन्त गुण हैं। वैसे एक स्वयं जाननेवालेमें दूसरे अनन्त गुण हैं। परन्तु वह जाननस्वभाव ऐसा है कि वह अनन्ततासे भरा स्वयं जाननेवाला है। वह स्वयं जाननेवालेको जान लेना। दूसरेको जाने इसलिये मैं जाननेवाला, दूसरेको देखता है इसलिये मैं देखनेवाला, ऐसा नहीं, मैं स्वयं जाननेवाला, स्वयं देखनेवाला हूँ।
मुमुक्षुः- अर्थात उसका स्वयंका अंतरंग ही ऐसी पुकार करता है कि मैं जाननेवाला हूँ, इस तरह स्वयं अपनेआपसे ख्यालमें आता है।
समाधानः- स्वयं अपनेआपसे अन्दर स्वयं जाननेवाला, स्वयं देखनेवाला (है)। स्वयंसिद्ध अस्तित्व अपना उस तरह ग्रहण कर लेता है।
मुमुक्षुः- गुरुका अवलम्बन तो चाहिये न? आत्माकी ... पहले गुरुका अवलम्बन