Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३८८

समाधानः- अग्नि उष्ण है इसलिये...

मुमुक्षुः- गर्म करती है इसलिये उष्ण है, ऐसा नहीं। स्वयं उष्ण है।

समाधानः- बहुत पहलू नयविभागके (हैं)। समझे सबकी योग्यता अनुसार। ... जानता है, ऐसा नहीं कह सकते। दोनों बात रहस्ययुक्त है, ...

आत्माको कोई जन्म-मरण नहीं है, वही करनेका है। कितने जन्म-मरण किये, अनन्त कालमें अनन्त किये। आत्मा ज्ञायक जाननेवाला है। यह शरीर भिन्न है। विकल्प होता है वह भी अपना स्वभाव नहीं है। आत्मा ज्ञान और आनन्दसे भरपूर है।

मुमुक्षुः- विकल्प आत्माका स्वभाव नहीं है, विकल्प आत्माका स्वभाव नहीं है। ज्ञायककी महिमा रखनी, ज्ञायककी महिमा रखनी और बाहरमें देव-शास्त्र-गुरुी महिमा रखनी, बाहरमें। अन्दरमें ज्ञायक। बाहरमें देव-गुरु-शास्त्र।

मुमुक्षुः- कभी ऐसा लगता है, ऐसा नहीं किया होगा? यहाँ तक नहीं पहुँचे होंगे?

समाधानः- जीवने किया, लेकिन अपूर्वता नहीं लगी है। अपूर्व लगे कि यह कुछ अलग है। अंतरमें यथार्थ देशनालब्धि जिसे हुयी हो वह जाती नहीं। ऐसी अपूर्वता प्रगट हुयी हो वह जाती नहीं। अनन्त कालमें किया लेकिन अपूर्वता नहीं लगी कि यह कुछ अपूर्व है। स्वयंको अपने आत्माको अंतरमेंसे विश्वास आये कि कितनी गहराई है, कितनी अपूर्वता लगे, वह स्वयंको विश्वास आये अंतरमे।

मुमुक्षुः- कभी थोडा काल जाय तो भूल जाते हैं। फिर तो...

समाधानः- भूल जाते हैं, लेकिन करनेका यही है। जीवनमें कुछ अलग ही करनेका है। अंतरका मार्ग अंतरमें है। और चैतन्यकी अंतरमेंसे महिमा आये कि चैतन्यतत्त्व भिन्न है और यह सब बाहरका कुछ अपूर्व नहीं है। ऐसे अंतरमें रुचिके बीज गहरे जाय तो वह नहीं जाते।

मुमुक्षुः- .. त्याग वैराग्यकी...

समाधानः- आत्मा कैसे प्राप्त हो? तत्त्व विचार, स्वाध्याय होता है। त्याग, वैराग्य तो उसमें जितना स्वयं आत्माकी ओर मुडे उतनी अंतरसे विरक्ति, अंतरसे उसे रस ऊतर जाय, ऐसा सब उसे अंतरमें अमुक प्रकारसे होता है। लेकिन प्रथम उपाय तो सच्ची समझ करनी। सच्ची समझके लिये तत्त्व विचार, स्वाध्याय, श्रवण, मनन आदि होता है। त्याग वैराग्य तो जितना उसे अंतरमेंसे विभावका रस छूटे, अंतरमें थोडा विरक्त तो होना ही चाहिये। वह तो बीचमें होता ही है। उसके साथ मार्ग तो सच्ची समझ करनी वह है। उसमें स्वाध्याय, विचार, मनन आदि सब होता है। मुख्य उपाय वह है, सच्ची समझ करनी।