Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३९० स्वभाव है इसलिये सहज है, सुगम है, सरल है। परन्तु अनादिके अभ्यासके कारण, विभावके अभ्यासके कारण दुर्लभ है। अपना स्वभाव है इसलिये सहज है। स्वयं ही है, कोई अन्य नहीं है, इसलिये सहज है। प्रगट करे तो अंतर्मुहूर्तमें होता है, न करे तो अनन्त काल जाता है। वह उसका अनादिका विभावका अभ्यास है इसलिये, बाकी स्वभाव अपना है। स्वयंमेंसे प्रगट होता है, बाहरसे नहीं आता है या बाहर कहीं खोजने नहीं जाना पडता, अपनेमें भरा है वह प्रगट करनेका है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- जब तक उसकी अधूरी पर्याय है, उसमें अमुक प्रकारका कर्तृत्व आये बिना नहीं रहता। परन्तु उसकी कर्ताबुद्धि तोडनेकी बात है। मैं परपदार्थको कर सकता हूँ और विभावपर्यायका मैं कर्ता हूँ, ऐसे स्वामीत्व बुद्धि छोडनी। परपदार्थका तो कर ही नहीं सकता, विभावपर्यायमें अपने पुरुषार्थकी मन्दताके कारण .. उस अपेक्षासे स्वयं अज्ञान अवस्थामें कर्ता होता है। ज्ञान अवस्थामें वह परिणति अपनी अस्थिरताके कारण अपनी स्वयंमें होती है, परन्तु उसकी कर्ताबुद्धि छूट जाती है। ऐसे पुरुषार्थ जो होता है, वह स्वयं करता है, परन्तु मैं कर सकता हूँ, ऐसी कर्ताबुद्धि छूट जाती है। बुद्धि। विकल्प करके कि मैं यह करुँ, मैं यह करुँ, यह बुद्धि तोडनी है। बाकी ऐसा कर्तृत्व तो अमुक जातकी अधूरी भूमिकामें बीचमें आता है। पलटता है, परिणामको पलटता है।

.. विभावका कर्तृत्व और परपदार्थका कर्तृत्व और पुरुषार्थ करता है, उस प्रकारका कर्तृत्व, उन सबमें फर्क है। परको तो कर नहीं सकता। विभावपर्यायको, .. कोई अपेक्षासे स्वयं उसमें जुडता है। अज्ञान अवस्थासे कर्ता (होता है)। ज्ञान अवस्थामें उसके पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है। और पुरुषार्थ करता है, वह भी स्वयं स्वभावकी ओर (जाता है), उन सबमें फर्क है। परन्तु उसमें कर्ताबुद्धि छूट जाती है।

समाधानः- .. दूसरेको उष्ण करती है, इसलिये उष्ण है, ऐसा नहीं, स्वयं उष्ण है। दूसरेको ठण्डा करता है इसलिये नहीं, बर्फ स्वयं ठण्डा है। वैसे स्वयं ज्ञायक है। अब उसका अर्थ क्या करना, किसके साथ मिलान करना, वह सबके दिमाग पर आधारित है। परको जाने, न जाने वह बात ही नहीं थी। स्वयं ज्ञायक है। स्वयंक ज्ञायकको पहचान। परको जानता हूँ इसलिये जानता हूँ, ऐसे नहीं, लेकिन मैं स्वयं ज्ञायक हूँ। अब, उसका अर्थ क्या करना, वह सबके दिमाग पर आधार रखता है। अगम अगोचर नय कथा। नय कथामें ऐसा ही है, ऐसा ही है, ऐसा बोल नहीं सकते। आपकी योग्यता अनुसार जैसे समझना हो वैसे। स्वयं कोई अपेक्षासे स्वयं अपनेको जानता है और परको जानता है वह भी साथमें है, स्वपरप्रकाशक है। दोनों अपेक्षाएँ हैं, जिसको